Atmadharma magazine - Ank 304
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: महा : २४९प आत्मधर्म : १३ :
चारे अनुयोग शाश्वत छे; एटले के जेम जगतमां छ द्रव्यो सदाय छे, तीर्थंकरादि
महापुरुषोनी सदाय परंपरा चाल्या करे छे, लोकरचना शाश्वत छे, तेम तेनुं वर्णन
करनारा शास्त्रोनी परंपरा पण जगतमां अनादिथी चाली आवे छे. जेम तीर्थंकरो सदाय
थता आवे छे तेम तेमनी कथाओ पण सदाय परंपरा चाली आवे छे–तीर्थंकरादिना नाम
वगेरे फरे पण तेमनी कथा तो चाल्या ज करे छे. ए ज रीते त्रणलोकनी रचना, तेमां
महाविदेहक्षेत्र, नंदीश्वरद्वीप वगेरे असंख्यात द्वीप–समुद्रनी तथा स्वर्ग–नरकनी शाश्वत
रचना छे. तेनुं वर्णन त्रिलोकप्रज्ञप्ति वगेरे करणानुयोगमां आवे छे. जेम ते वस्तुओ
शाश्वत छे तेम तेनुं वर्णन करनारा शास्त्रो पण सदाय होय छे, ने तेनुं ज्ञान करनारा
जीवो पण सदाय होय छे. (अर्थसमय, शब्दसमय ने ज्ञानसमय त्रणेनी संधि छे)
विद्वानोए वस्तुस्वरूप बतावनारा आवा चारे अनुयोगनो आत्महित–अर्थे अभ्यास
करवो; तेनुं नाम ज्ञानपूजा छे. चारे अनुयोगना अभ्यास द्वारा वस्तुस्वरूप समजीने
शुद्धात्मानुुंं ध्यान करवुं ते उपदेशनो सार छे. करणानुयोग द्वारा पण स्वात्मचिंतन करीने
स्वरूप ज आराध्य छे. षट्खंडागम वगेरे करणानुयोगमां जीवना सूक्ष्मपरिणामो
बताव्या छे; ते सूक्ष्मपरिणामोना ज्ञान द्वारा पोताना परिणाम शांत करीने
वीतरागस्वरूपमां रमणता करवा–ते करणानुयोगना अभ्यासनुं साचुं फळ छे. चारे
अनुयोगनुं फळ वीतरागता ज छे. जैनशास्त्र वीतरागताने ज पोषे छे; एटले के
आत्मानुं शुद्ध स्वरूप बतावीने तेनी द्रष्टि ने तेमां एकाग्रतानो ज उपदेश आपे छे. ए
ज शुद्ध उपदेशनो सार छे.
जुओ, शास्त्रोनो अभ्यास केवा लक्षे करवो ते पण आमां आव्युं. पंडिताईना
मान खातर नहि पण पोताना ज्ञानप्रयोजननी सिद्ध माटे चार अनुयोगनो अभ्यास
करवो, तेमांथी स्वस्वरूप नक्की करीने तेनुं चिंतन करवुं. स्वस्वरूपने आराधवुं ते चारे
अनुयोगनो सार छे. वीतरागस्वरूपमां उपयोगने जोडवाथी ज (शुद्धोपयोगथी ज)
सम्यग्दर्शनादि प्रगटे छे. आ सिवाय बहारना साधनोना जोडाणथी के रागथी
सम्यग्दर्शनादि थतां नथी. पोताना अंर्त स्वभावसमुद्रमां डुबकी लगाववाथी सम्यग्दर्शन
ने परम आनंदनी अनुभूति थाय छे. ते ज आत्मानुं निश्चयपद छे ने ज्ञानीवडे स्वसंवेद्य
छे. आ सिवाय बहारमां–रागमां गोथा लगाव्ये कांई हाथ आवे तेम नथी.
वीतरागी करणानुयोगमां सर्वज्ञदेवे जे सूक्ष्मपरिणामोनुं तथा त्रणलोकनी
रचनानुं वर्णन कर्युं छे तेवुं बीजे क्यांय नथी–एम करणानुयोग द्वारा पण निःशंक थईने
मिथ्यात्वादि शल्य छोडवा, साचा देव–गुरु–शास्त्र ओळखी, मिथ्यात्वादि शल्य छोडीने
यथार्थ वस्तुस्वरूप जाणवुं जोईए. शुद्धद्रष्टि, द्रव्यद्रष्टि, ते आत्माना पूर्ण स्वरूपने
देखनारी छे ने तेना वडे ज शुद्ध सम्यग्दर्शननो लाभ थाय छे. आवा शुद्ध आत्माने
लक्षमां राखीने चारे अनुयोगनुं चिन्तन करवुं जोईए. शुद्धद्रष्टि वगर शास्त्रोनुं साचुंं
रहस्य समजाय नहीं.