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एकवार जो तो खरो
श्रीगुरु करुणाथी संबोधे छे के बापु! अनंतकाळे
मोंघुं एवुं आ मनुष्यपणुं मळ्युं ने सत्य धर्मसमजवानो
योग मळ्यो, तेमां जो अत्यारे तारा सत्स्वभावने
ओळखीने तेनुं शरण न लीधुं तो चारगतिमां क्यांय तने
शरण नहि मळे. तुं बहारथी के रागथी धर्म मनावी दे तेथी
कदाच जगतना अज्ञानीओ छेतराशे ने तने मान आपशे,
पण भगवानना मार्गमां ए वात नहि चाले, तारो आत्मा
तने जवाब नहि आपे. रागथी धर्म मानतां तारो आत्मा
छेतराई जशे, सत् नहि छेतराय; सत् तो जेवुं छे तेवुं ज
रहेशे. तुं बीजुं मान तेथी कांई सत् फरी नहि जाय. रागने
तुं धर्म मान तेथी कांई राग तने शरण नहि आपे. भाई,
तने शरणदाता ने सुखदाता तो तारो वीतरागस्वभाव छे,
बीजुं कोई नहि. भगवान! तारा अंतरमां बिराजमान
आवा आत्माने एकवार जो तो खरो.
तंत्री: जगजीवन बावचंद दोशी संपादक: ब्र हरिलाल जैन
वीर सं. २४९प महा (लवाजम: चार रूपिया) वर्ष २६ : अंक ४