Atmadharma magazine - Ank 304
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 3 of 47

background image
हे जिन! मेरी ऐसी बुद्धि कीजे
हे जिन! मेरी ऐसी बुद्धि कीजे........हे जिन०
रागद्वेष–दावानलतेंं बचि, समतारसमें भीजे...हे जिन०
परमें त्याग अपनपो, निजमें लाग, न कबहूं छीजे,
कर्म–कर्मफलमांहि न राचे ज्ञानसुधारस पीजे......हे जिन०
सम्यक्दरशन–ज्ञान–चरणनिधि ताकी प्राप्ति करीजे,
मुज कारजके तुम कारनवर अरज
दौलकी लीजे...हे जिन०
छहढाळाना कर्ता पं. श्री दौलतरामजी आ भजनद्वारा श्री
जिनेन्द्रदेव प्रत्ये प्रार्थना करतां भावना भावे छे के हे जिन! मने
एवी उत्तम सुबुद्धि प्रगटो के जेथी रागद्वेषरूपी दावानळमांथी
बचीने मारो आत्मा समतारसमां तरबोळ बने; अने परमां
आत्मबुद्धि छोडीने निजस्वरूपमां एवो लागे के तेमांथी कदी न
छूटे; कर्म के कर्मफळमां ते कदी न राचे, ने ज्ञानसुधारस पीए; आ
रीते सुबुद्धि वडे मारो आत्मा सम्यग्दर्शन–ज्ञान चारित्ररूपी
निधिने प्राप्त करे. मारा आवा कार्यनुं उत्तम कारण आप छो–माटे
हे जिनेन्द्रदेव! आ अरजीनो स्वीकार करजो.