: ३४ : आत्मधर्म : महा : २४९प
आपणे अने सीमंधरादि तीर्थंकरो जे द्वीपमां रहीए छीए तेनुं नाम जंबुद्वीप छे–
आपणा भरतक्षेत्रथी सीमंधरभगवाननुं विदेहक्षेत्र लगभग पचास हजार
योजन जेटलुं नजीक छे. (अहीं १ योजन एटले लगभग चार हजार माईल.)
जंबुद्वीपमां वच्चे मेरूपर्वत आवेल छे–ते विदेहक्षेत्रनी वचमां छे.
मेरूपर्वत लगभग चालीस करोड माईल (एक लाख योजन) ऊंचो छे.
मेरूपर्वतनी उत्तर तरफ जंबुनामनुं एक कुदरती वृक्ष छे, ते वृक्ष उपर शाश्वत
जिनालयमां रत्नमय जिनबिंब बिराजे छे. आ जंबुवृक्ष उपरथी आपणा द्वीपनुं नाम
‘जंबुद्वीप’ छे.
जे जंबुवृक्षने कारणे आपणो द्वीप जंबुद्वीप कहेवायो ते जंबुवृक्ष विदेहक्षेत्रमां
आव्युं छे.
जो के आपणा भरतक्षेत्रना तीर्थंकरो भरतक्षेत्रनी बहार विहार नथी करता,
भरतक्षेत्रना आर्यखंडमां ज विहार करे छे; छतां बधा तीर्थंकरो एकवार तो
विदेहक्षेत्रमां जाय छे.–क्यारे? के जन्माभिषेक माटे ईन्द्र तेमने मेरूपर्वत उपर लई
जाय छे त्यारे तेमनुं विदेहगमन थाय छे, केमके मेरूपर्वत विदेहक्षेत्रनी वच्चे आव्यो
छे.
अनेक मुनिवरो पण मेरुतीर्थनी वंदना करवा जाय छे, त्यां शाश्वत प्रतिमाओनां
दर्शन करे छे, ने निजात्मानुं ध्यान धरे छे.
आपणे अहींथी भावपूर्वक ए मेरुतीर्थने, ए विदेहवासी तीर्थंकरोने अने ए
मुनिवरोने नमस्कार करीए छीए.
(जंबुद्वीप पछीना बीजा बे द्वीपोमां पण चार मेरूपर्वतो छे.)
उगरचंद शांतिलालनी गंभीर तबीयत वखते भाईश्री जगुभाईए कहेल के–
आपणने तो पूज्य गुरुदेवश्रीनो परम उपकार छे तेथी सर्वे जातना समाधान थई शके
छे. आ देह तो क्षणभंगुर छे; संसारना संयोगी पदार्थनो वियोग अवश्य थाय छे. मुख्य
एक ज्ञायकस्वभाव छे तेनुं शरण करवा जेवुं छे.