: महा : २४९प आत्मधर्म : ३३ :
विविध वचनामृत
वाह! ए मुनिदशा केवी अदभुत...के दररोज चोवीसकलाकमांथी जेनां आठकलाक
तो निर्विकल्पअनुभवना आनंदमां ज वीते. (केमके मुनिओ छठ्ठा–सातमा गुणस्थाने
एवा झुले छे के मुनिदशाना काळमांथी बे भाग छठ्ठागुणस्थानना, ने एक भाग सातमा
गुणस्थाननो छे.)
रे जीव! आवा मुनिवरोनो आदर्श हृदयमां झीलीने तुं रोज आठ मिनिट तो
जेने साथे लईने मोक्ष पामी शकाय–ते मोक्षनुं साचुं साधन होय;
–जेमके सम्यग्दर्शन
जेने साथे लईने मोक्ष न पामी शकाय–ते मोक्षनुं साचुं साधन नथी;
–जेम के शुभराग
*
कोई कहे के शरीर ते मोक्षनुं साधन!
तो तेने पूछीए छीए के– शुं मोक्षमां तुं शरीरने साथे लई जवानो छो?
–ना; तो ते मोक्षनुं साचुं साधन नहि.
मोक्ष माटे जेने छोडवुं पडे ते मोक्षनुं साचुं साधन केम होय?
मोक्षमां जनारने जेम शरीर छोडवुं पडे छे तेम राग पण छोडवो पडे छे, माटे ते
पण मोक्षनुं साधन नथी.
*
साधन अने साध्य बंने एक जातना होय छे.
पूर्ण चैतन्यभावरूप सर्वज्ञतानुं साधन पण चैतन्यमय होय.
पूर्ण वीतरागभावनुं साधन पण अंशे वीतरागभाव होय; राग तेनुं साधन न
होय. राग वडे तो राग सधाय, रागवडे वीतरागता न सधाय.
अज्ञानभाव वडे अज्ञान सधाय, अज्ञानवडे ज्ञान न सधाय.
आ प्रमाणे साधक ने साध्य बंने एक जातना होय छे.