: ४० : आत्मधर्म :महा: २४९प
बोधिदुर्लभ–अनुप्रेक्षा
अनंतकाळे निगोदमांथी नीकळीने सिद्धपद–प्राप्ति सुधीनी दुर्लभतानो क्रम शुं छे?
अने तेमां अपूर्वपद क्या छे? ते आ सामेना चित्रमां सूचव्युं छे. कार्तिकस्वामीए
बोधिदुर्लभअनुप्रेक्षामां जे दुर्लभताओ बतावी छे ते अनुसार छहढाळामां कथन छे.
प्रथम तो निगोदमांथी नीकळीने पृथ्वीकायादि प्रत्येकमां आववुं दुर्लभ. पछी
बेईन्द्रि–त्रीईन्द्रि–चतुरीन्द्रि के असंज्ञी पंचेन्द्रि थवुं ते दुर्लभ. पछी पंचेन्द्रि थवुं दुर्लभ.
पंचेन्द्रियमांय मनुष्य थईने पण कुदेव–कुगुुरुनी सेवाथी छूटीने सुदेव–सुगुरुनी
(पंचपरमेष्ठीनी) सेवा दुर्लभ छे.
(आ बधुं दुर्लभ होवा छतां अहीं सुधी तो जीव पहोंची गयो छे.)
हवे सुदेव–गुरुनी सेवा पामीने पण सम्यग्दर्शन पामवुं ते दुर्लभ छे;–अहींथी
अपूर्व पदनी शरूआत थाय छे. पछी रत्नत्रयरूप मुनिदशा पामवी दुर्लभ छे. तेनाथी
पण केवळज्ञानरूप अरिहंतपद अने सिद्धपद दुर्लभ छे.
हे जीव! नीचला पांच पगथियां तो तुं वटावी गयो; ने पंचपरमेष्ठीनी सेवा
सुधी पहोंची गयो; हवे खरा जरूरी उपला चार अपूर्व पगथीयां चडवानो उद्यम कर.
कदाच एक साथे चार पगथियां न चडी शकाय तो एक पगथियुं तो जरूर चडीने
‘अपूर्वतामां आवी जा.’
(जैन बाळपोथीना प्रश्नो (पृ. ८ थी चालु) ]
१०२ तमारे कोनां दर्शन करवा छे?
१०३ तमारे कोनी सेवा करवी छे?
१०४ तमने शुं करवानुं गमे छे?
१०प तमारे शेमांथी छूटवुं छे?
१०६ तमारे झटझट क्यां जवुं छे?
१०७ तमे रोज धर्मनो अभ्यास करो छो के नहीं?
१०८ तमारी बा तमने धर्मनी वार्ता कहे छे के नहीं?
१०९ तमे रोज भगवाननां दर्शन करवा जाओ छो के नहीं?
११० बाळपोथीमां १६ स्वप्नानां चित्रो क्या पाने छे?
१११ १६ स्वप्नमां पहेलुं स्वप्न कयुं?
११२ जैनझंडामां चार वाक्यो लख्या छे–ते क्या? (पाठ १६)
११३ हवे ‘जैनधर्मनी पहेली चोपडी वांचवी तमने गमशे?
११४ ‘अमे तो वीरतणा संतान’ ए गीत तमने आवडे छे? जयजिनेन्द्र