: फागण : २४९प आत्मधर्म : ७ :
११४. मनुष्यना ज भव उपराउपरी १२३. जीवना संसारपरिभ्रमणनी कथा शा
केटला थई शके? माटे संभळावे छे?
आठ. तेनाथी छूटवा माटे.
११प. चिंतामणि समान शुं छे? १२४. असंज्ञी जीवो केवा छे?
एकेन्द्रिमांथी छूटीने त्रसपणुं विचारशक्ति वगरना छे,
पामवुं ते. नरकथी वधु दुःखी छे.
११६. मनुष्यपणानी दुर्लभता १२प. सिंहादिक तिर्यंचोने धर्मप्राप्ति
जाणीने शुं करवुं? थई शके?
वीतरागविज्ञान वडे मोक्षनो हा.
साधवानो उद्यम करवो. १२६. चारगतिनां दुःखो कोण भोगवे छे?
११७. मनुष्यपणानी किंमत केटली? अज्ञानी.
मनुष्यपणामां जो आत्माने १२७. ज्ञानी शुं करे छे?
साधे तो ज तेनी किंमत छे; ज्ञानी तो सुखना पंथे चड्या छे;
जो विषय–कषायोमां ज गुमावे वीतरागविज्ञान वडे मोक्षने
तो तेनी किंमत कांई नथी. साधी रह्या छे.
११८. एकेन्द्रिय जीवोने केवी चेतना छे? १२८. देहनुं छेदन–भेदन थतां क्यो
अज्ञानचेतना. जीव दुःखी थाय छे?
११९. ज्ञानचेतना केवी छे? जेने देह प्रत्ये मोह होय ते.
ज्ञानचेतना आनंदरूप छे, १२९. दुःख शेनुं छे–छेदनभेदननुं
ने मोक्षनुं कारण छे. के मोहनुं?
१२०. ज्ञानचेतनानुं बीजुं नाम शुं? मोहनुं.
वीतरागविज्ञान. १३०. प्रतिकूळ संयोग ते दुःख–ए
१२१. जीवनो मित्र कोण? शत्रु कोण? व्याख्या बराबर छे?
ज्ञानभावथी जीव ज ना, मोह ते दुःख छे. जेने मोह
पोते पोतानो नथी तेने दुःख नथी.
मित्र छे, ने अज्ञानभावथी १३१. आत्मा शेनाथी सुखी छे?
पोते पोतानो शत्रु छे. आत्मा पोताना स्वभावथी ज
१२२. जीव सुखी–दुःखी केम थाय छे? सुखी छे; सुख कोई संयोगने लीधे
पोताना सवळा भावथी सुखी, नथी; बाह्यविषयोमां सुख नथी.
अवळा भावथी दुःखी.