Atmadharma magazine - Ank 305
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 2 of 45

background image
३०५
रे आत्मा!
तारा जीवनमां उत्कृष्ट वैराग्यना जे प्रसंगो
बन्या होय, ने वैराग्यनी सीतार ज्यारे झणझणी ऊठी
होय...एवा प्रसंगनी वैराग्यधाराने बराबर जाळवी
राखजे, फरीफरी तेनी भावना करजे. कोई महान
प्रतिकूळता, अपजश वगेरे उपद्रव प्रसंगे जागेली तारी
उग्र वैराग्यभावनाने अनुकूळता वखते पण जाळवी
राखजे. अनुकूळतामां वैराग्यने भूली जईश नहीं.
वळी कल्याणकना प्रसंगोने, तीर्थयात्रा वगेरे
प्रसंगोने, धर्मात्माओना संगमां थयेला धर्मचर्चा वगेरे
कोई अद्भुत प्रसंगोने, सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रय संबंधी
जागेली कोई उर्मिओने, तथा तेना प्रयत्न वखतना
धर्मात्माओना भावोने याद करीने फरी फरीने तारा
आत्माने धर्मनी आराधनामां उत्साहित करजे.
तंत्री : जगजीवन बावचंद दोशी * संपादक : ब्र. हरिलाल. जैन
वीर सं. २४९५ फागण (लवाजम : चार रूपिया) वर्ष २६ : अंक ५