Atmadharma magazine - Ank 305
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: ३० : आत्मधर्म : फागण : २४९प
जीव रागादिकषायोने स्पर्शतो य नथी,–स्पर्श्यो त्यारे कहेवाय के जो तेनी साथे
एक्ता करे. जेम आंख अग्निने अडती नथी, (अडे तो दाझी जाय) तेम ज्ञानचक्षु
शुभाशुभ–कषायरूप अग्निने अडतुं नथी, जो अडे एटले के एकत्व करे तो ते
अज्ञान थई जाय; माटे ज्ञान परभावोने अडतुं नथी, करतुं नथी, वेदतुं नथी,
तन्मय थतुं नथी. आवा ज्ञानस्वरूप आत्मा ते ज साचो आत्मा छे. रागने करे
एवो आत्मा ते ‘साचो आत्मा’ नथी, एटले के आत्मानुं भूतार्थस्वरूप एवुं
नथी. शुभराग वगेरे व्यवहारक्रिया करतां करतां निश्चय सम्यक्त्वादि थशे–एम जे
माने तेणे साचा आत्माने नथी जाण्यो पण रागने (अनात्माने) ज आत्मा
मान्यो छे, ते मोटो खोटो छे (–मिथ्याद्रष्टि छे). सत्य एवा भूतार्थ आत्माने
जाण्या वगर सम्यग्दर्शन न थाय, सम्यग्दर्शन वगर चारित्रदशा (मुनिपणुं) न
होय, ने चारित्रदशा वगर मोक्ष न होय. चारित्र (मुनिदशा वगर तो सम्यग्दर्शन
होई शके, पण चारित्रदशा सम्यग्दर्शन वगर कदी होई शके नहि. माटे मोक्षार्थिए
साचा आत्मानो निर्णय करीने सम्यग्दर्शन करवुं जोईए.
* सत् छेतराशे नहि *
श्री गुरु करुणाथी संबोधे छे के बापु! अनंतकाळे मोंघुं एवुं आ मनुष्यपणुं
मळ्‌युं ने सत्यधर्म समजवानो योग मळ्‌यो, तेमां जो अत्यारे तारा सत्स्वभावने
ओळखीने तेनुं शरण न लीधुं तो चारगतिमां क्यांय तने शरण नहि मळे. तुं बहारथी
के रागथी धर्म मनावी दे तेथी कदाच जगतना अज्ञानीओ छेतराशे ने तेओ तने मान
आपशे, पण भगवानना मार्गमां ए वात नहि चाले, तारो आत्मा तने जवाब नहि
आपे, रागथी धर्म मानतां तारो आत्मा छेतराई जशे, सत् नहि छेतराय, सत् तो जेवुं
छे तेवुं ज रहेशे. तुं बीजुं मान तेथी कांई सत् फरी नहि जाय. रागने तुं धर्म मान तेथी
कांई राग तने शरण नहि आपे. भाई! तने शरणरूप ने सुखरूप तो तारो
वीतरागस्वभाव छे, बीजुं कोई नहि. भगवान! तारा अंतरमां बिराजमान आवा
आत्माने एकवार जो तो खरो.