
कर्यो छे, ने एवो अनुभव अत्यारे पण थई शके छे. मोक्षमार्गनी रीत त्रणे काळे एक
ज छे.
विनयादि शुभराग अने अंतरनुं ज्ञान ए बंनेना लक्षण जुदा छे–एवुं ज्ञान पण ते ज
क्षणे वर्ते छे; वंदनादि विनय वखते ज एनुं ज्ञान अंर्तस्वभावमां नमेलुं छे, रागमां
नमेलुं नथी. शिष्यने केवळज्ञान थाय अने ते केवळज्ञान थया पछी पण छद्मस्थ गुरु
प्रत्ये वंदनादि विनय करे–एवो तो मार्ग नथी; ए तो वीतराग थया, हवे तेने
वंदनादिनो राग केवो? ऊलटुं गुरुने एम थाय के वाह, धन्य छे एने....के जे पदने हुं
साधी रह्यो छुं ते कैवल्यपद एणे साधी लीधुं. वीतरागने तो विकल्प होतो ज नथी, पण
अहीं तो कहे छे के–जेने ते प्रकारनो विकल्प आवे छे एवा ज्ञानीने पण ते विकल्पनुं
कर्तृत्व ज्ञानमां नथी.–आवो ज्ञानस्वभाव छे, ने आवो वीतरागनो मार्ग छे. जेम
बहारना कणिया आंखमां समाता नथी तेम बाह्यवृत्तिरूप शुभाशुभराग ते
ज्ञानभावमां समाता नथी. राग तो आकुळतानी भठ्ठी छे ने ज्ञानभाव तो परम
शांतरसनो समुद्र छे, ते ज्ञानसमुद्रमां रागरूप अग्नि केम समाय? ज्ञान पोते रागमां
भळ्या वगर तेनाथी मुक्त रहीने तेने जाणे छे. आवो ज्ञानस्वभाव सम्यग्दर्शनमां
भास्यो.
नहि. जेम केवळज्ञानमां विकल्प नथी तेम साधकना श्रुतज्ञानमां पण विकल्प नथी;
ज्ञानथी विकल्प जुदो छे, एटले ज्ञानमां ते नथी. केवळज्ञाननी भूमिकामां तो विकल्प छे
ज नहि, ज्यारे श्रुतज्ञाननी भूमिकामां देव–गुरुनी भक्ति वगेरे विकल्पो छे पण ज्ञानी
तेने करतो नथी, तेने ज्ञानथी भिन्नपणे जाणे छे. एटले ज्ञानीने विकल्प ज्ञानना
ज्ञेयपणे छे पण ज्ञानना कार्यपणे नथी. ज्ञानपणे परिणमेलो