Atmadharma magazine - Ank 305
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: २८ : आत्मधर्म : फागण : २४९प
* ज्ञानमां पाप नथी, तेम ज्ञानमां पुण्य पण नथी *
निर्मळ ज्ञानपर्यायमां रागनुं कर्तृत्व–भोक्तृत्व नथी तेम ते ज्ञानपर्यायमां अभेद
एवो आखो शुद्धआत्मा पण तेनो अकर्ता–अभोक्ता छे, एम कहीने आखोय
ज्ञायकस्वभाव अकारक–अवेदक बताव्यो. आवा आत्मानुं भान थाय ते सम्यग्दर्शन ने
सम्यग्ज्ञान छे; अने ते धर्मनुं मूळ छे. लोको दयाने धर्मनुं मूळ कहे छे पण ए तो मात्र
उपचार छे, दयादि शुभपरिणाम ए कांई मोक्षनुं कारण नथी, ए तो पुण्यबंधनुं कारण
छे. अहीं तो कहे छे के ज्ञानमां जेम हिंसानो अशुभभाव नथी, तेम ज्ञानमां दयानो
शुभभाव पण नथी. शुभ–अशुभभाव करवानुं काम ज्ञानने सोंपवुं ते तो अज्ञान छे,
तेने ज्ञाननी खबर नथी. जेम पापभाव ज्ञाननो स्वभाव नथी तेम शुभविकल्प ते पण
शुद्ध ज्ञाननुं कार्य नथी. आ रीते शुद्धज्ञानरूपे परिणमतो ज्ञानी रागादिने करतो नथी,
मात्र जाणे ज छे. ‘जाणे ज छे’ एटले के ज्ञानरूपे ज परिणमे छे.–कांई परसन्मुख
थईने एने जाणवानी वात नथी.
* आवो मार्ग वीतरागनो... *
जुओ, आ जाणवारूप ज्ञानक्रियामां मोक्षमार्ग समाय छे ज्यां अंतर्मुखद्रष्टि
वडे पर्यायनी एकता शुद्धस्वभाव साथे थई त्यां द्रव्यमां के पर्यायमां क्यांय
व्यवहारना विकल्पोनुं कर्तृत्व रहेतुं नथी; ज्ञानमां कोई विकल्पनुं कर्तृत्व नथी,
तेनुं भोक्तृत्व नथी, तेनुं ग्रहण नथी, ते–रूप परिणमन नथी. आवा ज्ञानस्वरूप
आत्मा छे तेने धर्मी जीव अनुभवे छे. भगवाने आवा अनुभवने मोक्षमार्ग कह्यो
छे.–
आवो मार्ग वीतरागनो भाख्यो श्री भगवान.
समवसरणनी मध्यमां सीमंधर भगवान.
विदेहक्षेत्रमां सीमंधर परमात्मा दिव्यध्वनिवडे आवो मार्ग उपदेशी रह्या
छे ने गणधर वगेरे श्रोताजनो भक्तिपूर्वक ते साक्षात् सांभळी रह्या छे, त्यां
घणाय जीवो आवो अनुभव करी करीने मोक्षमार्गरूपे परिणमी रह्या छे.
कुंदकुंदाचार्यदेवे ए