
भाई, ते कदी तारा साचा स्वरूपनो विचार ज कर्यो नथी के अरे, हुं कोण छुं?
करवा मारे शुं करवुं जोईए? मारामां एवुं क्युं वस्तुस्वरूप छे के जेनी सन्मुख जोतां
दुःख टळे ने सुख प्रगटे? दुःखमांथी तो कांई सुख न आवे; तो दुःख वगरनुं एवुं क्युं
तत्त्व छे जेमांथी मने सुख मळे? –आ प्रमाणे स्वतत्त्वनो साचो विचार (एटले के
स्वसन्मुख विचार) करे तो सम्यग्ज्ञान थाय. अरे, आवा उपायथी देडका जेवा
आत्माओ पण आत्मज्ञान पामीने मोक्षमार्गे चडी गया; ने आ उपाय विना
मंदकषायपूर्वक बहारमां हजारो राणीओ ने राजपाट छोडीने द्रव्यलिंगी साधु थवा छतां
आत्मज्ञान न पाम्या. जगतमां भले ए महात्मा तरीके पूजातो होय, पण अंदर पोते
महान–आत्मा रागद्वेष वगरनो आनंदकंद छे–तेना भान वगर एना भवभ्रमणनो
अंत नहि आवे. वीतरागदेवे कहेली वास्तविक पदार्थनी व्यवस्थाअनुसार आत्मानो
कायमी स्वभाव शुं ने पलटतो भाव शुं–तेने जाण्या वगर जीवनी अवस्थामां
सम्यक्त्वादिनुं परिणमन थतुं नथी एटले के धर्म थतो नथी.
लक्षमां आवशे? चेतनामूर्ति आत्माने जड–देहादि साथे तो कदी एकता थई नथी. देहमां
अनंता रजकणो छे ने तेमांनो दरेक रजकण द्रव्यपणे ध्रुव रहीने पोतानी पर्यायरूपे
स्वयं पलटाया करे छे.–आत्मा तेने करतो नथी. देहथी भिन्न भगवान आत्मा पण
अनंतगुणनो पिंड सत् वस्तु छे, ते द्रव्यपणे ध्रुव रहीने क्षणेक्षणे पोतानी पर्यायरूपे
स्वयं पलटाया करे छे. –तेनुं कारण कोई बीजुं नथी. रागपरिणाम हो के
वीतरागपरिणाम हो, ते परिणाम पोतानी पर्यायथी ज छे, तेनुं कारण बीजुं कोई
नथी. सत्द्रव्य ने सत्पर्याय बंने थईने आखी सत्वस्तु छे. आवी सत्वस्तुनो विचार
करीने तेनुं साचुं ज्ञान करवुं जोईए.