
देहादिसंयोगो तो अध्रुव ज छे, एना नाशथी कांई मारो नाश थतो नथी. ते तो
पहेलेथी ज माराथी जुदा छे; मारारूपे कदी थया ज नथी. ‘हुं तो अखंड परमात्मतत्त्व
छुं’ –एवी भावनारूप जे औपशमिकादि भावो ते मोक्षनुं कारण छे. मोक्ष कहो के
अमरपद कहो, ते आवा भाववडे पमाय छे.
रागनो कोई अंश ते मोक्षनुं कारण नथी.
नथी, एटले उपशमादि निर्मळभावोमां तो जरापण राग छे ज नहि, माटे ते भावो
समस्त रागादि रहित ज छे. अंशे शुद्धता अने अंशे राग बंने एकसाथे वर्तता होवा
छतां बंनेनुं स्वरूप जुदुं छे–एम ओळखे तो भेदज्ञान थाय. जे कोई रागअंश छे ते तो
बंधनुं ज कारण छे, ते मोक्षनुं कारण जराय नथी; अने मोक्षनुं कारण उपशमादि
निर्मळभावो छे, ते तो राग वगरना ज छे. जे शुभराग छे ते कांई मोक्षकारणरूप
‘भावना’ नथी, शुद्धचैतन्यस्वरूपमां एकाग्र थतां जे निर्विकारदशा प्रगटी ते
मोक्षकारणरूप ‘भावना’ छे, तेमां राग नथी.