Atmadharma magazine - Ank 305
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: ३४ : आत्मधर्म : फागण : २४९प
* सत् समजतां अमरपणुं *
अंदरमां पोताना आवा सत्ने समजे तो जीव नीडर थई जाय, मरणनी बीक न
रहे. मरे कोण? हुं तो त्रिकाळ आनंदकंद छुं; द्रव्यद्रष्टिमां मारे जन्म–मरण छे ज नहि.
देहादिसंयोगो तो अध्रुव ज छे, एना नाशथी कांई मारो नाश थतो नथी. ते तो
पहेलेथी ज माराथी जुदा छे; मारारूपे कदी थया ज नथी. ‘हुं तो अखंड परमात्मतत्त्व
छुं’ –एवी भावनारूप जे औपशमिकादि भावो ते मोक्षनुं कारण छे. मोक्ष कहो के
अमरपद कहो, ते आवा भाववडे पमाय छे.
ते भावो केवा छे? समस्त रागादिथी रहित छे, अने शुद्धउपादानकारणरूप छे,
तेथी ते मोक्षनुं कारण छे. ते समस्त रागरहित होवाथी तेने मोक्षना कारण कह्या, एटले
रागनो कोई अंश ते मोक्षनुं कारण नथी.
* स्वद्रव्यनी भावना रागवगरनी छे *
प्रश्न:– साधकने उपशमादि भाव वखते राग तो होय छे, छतां तेने ‘समस्त
रागादिरहित’ केम कह्या?
उत्तर:– जे उपशमादि निर्मळभावो छे ते तो राग वगरना ज छे; ते काळे
साधकभूमिकामां राग हो भले पण ते तो उदयभावरूपे छे, ते कांई उपशमादि भावरूपे
नथी, एटले उपशमादि निर्मळभावोमां तो जरापण राग छे ज नहि, माटे ते भावो
समस्त रागादि रहित ज छे. अंशे शुद्धता अने अंशे राग बंने एकसाथे वर्तता होवा
छतां बंनेनुं स्वरूप जुदुं छे–एम ओळखे तो भेदज्ञान थाय. जे कोई रागअंश छे ते तो
बंधनुं ज कारण छे, ते मोक्षनुं कारण जराय नथी; अने मोक्षनुं कारण उपशमादि
निर्मळभावो छे, ते तो राग वगरना ज छे. जे शुभराग छे ते कांई मोक्षकारणरूप
‘भावना’ नथी, शुद्धचैतन्यस्वरूपमां एकाग्र थतां जे निर्विकारदशा प्रगटी ते
मोक्षकारणरूप ‘भावना’ छे, तेमां राग नथी.