अने शुद्धपारिणामिकभाव द्रव्यरूप छे. आवा परस्पर सापेक्ष द्रव्य–पर्यायस्वरूप
आत्मवस्तु छे, द्रव्य–पर्याय बंनेनुं जोडकुं ते आत्मपदार्थ छे.
अने जे पारिणामिकभाव छे ते द्रव्यरूप छे, ते आत्मानो अहेतुक सहज स्वभाव छे,
सहज ज्ञान–आनंदादि अनंत स्वभावो पारिणामिकभावे त्रिकाळ छे. –आवा स्वभावने
जाणनारुं ज्ञान ते मोक्षमार्ग छे.
औपशमिकभाव: अनादिनो अज्ञानीजीव पहेलवहेला ज्यारे पोताना स्वभावनुं
अने आ औपशमिकभावथी धर्मनी शरूआत थाय छे. पछी चारित्रमां
उपशमभाव उपशमश्रेणी वखते मुनिने होय छे. उपशमभाव ए
निर्मळभाव छे. तेमां मोहनो वर्तमान उदय नथी, तेम ज तेनो सर्वथा क्षय
पण थई गयो नथी, पण जेम नीतरेला स्वच्छ पाणीमां नीचे कादव बेसी
गयो होय तेम सत्तामां कर्म पड्युं छे. जीवनी आवी निर्मळपर्यायने
औपशमिकभाव कहे छे.
मोक्षना कारणरूप क्षयोपशमभाव बताववो छे एटले सम्यग्दर्शनपूर्वकनो
क्षयोपशमभाव लेवो.