Atmadharma magazine - Ank 305
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: २ : आत्मधर्म : फागण : २४९प
जीवना पांच भावोमांथी क्या
भाव मोक्षनुं कारण छे?
(‘ज्ञानचक्षु’ पुस्तकमांथी एक प्रकरण) (पुस्तक छपाय छे)
औपशमिक, क्षायोपशमिक, क्षायिक, औदयिक अने पारिणामिक ए पांच भावो
छे; तेमां औपशमिक, क्षायोपशमिक, क्षायिक अने औदयिक ए चार भावो पर्यायरूप छे,
अने शुद्धपारिणामिकभाव द्रव्यरूप छे. आवा परस्पर सापेक्ष द्रव्य–पर्यायस्वरूप
आत्मवस्तु छे, द्रव्य–पर्याय बंनेनुं जोडकुं ते आत्मपदार्थ छे.
उपशमादि चार भावो प्रगटरूप छे, पर्यायरूप छे, तेमां उपशम–क्षयोपशम–
क्षायिक ए त्रण भावो निर्मळपर्यायरूप छे, अने औदयिकभाव विकारी पर्यायरूप छे.
अने जे पारिणामिकभाव छे ते द्रव्यरूप छे, ते आत्मानो अहेतुक सहज स्वभाव छे,
सहज ज्ञान–आनंदादि अनंत स्वभावो पारिणामिकभावे त्रिकाळ छे. –आवा स्वभावने
जाणनारुं ज्ञान ते मोक्षमार्ग छे.
औपशमिकभाव: अनादिनो अज्ञानीजीव पहेलवहेला ज्यारे पोताना स्वभावनुं
भान करे छे त्यारे, चोथा गुणस्थाने तेने औपशमिक सम्यग्दर्शन थाय छे,
अने आ औपशमिकभावथी धर्मनी शरूआत थाय छे. पछी चारित्रमां
उपशमभाव उपशमश्रेणी वखते मुनिने होय छे. उपशमभाव ए
निर्मळभाव छे. तेमां मोहनो वर्तमान उदय नथी, तेम ज तेनो सर्वथा क्षय
पण थई गयो नथी, पण जेम नीतरेला स्वच्छ पाणीमां नीचे कादव बेसी
गयो होय तेम सत्तामां कर्म पड्युं छे. जीवनी आवी निर्मळपर्यायने
औपशमिकभाव कहे छे.
क्षायोपशमिकभाव: आ भावमां कांईक विकास ने कांईक आवरण छे, ज्ञानादिनो
सामान्य क्षयोपशमभाव तो बधा छद्मस्थ जीवोने अनादिथी होय छे. पण अहीं
मोक्षना कारणरूप क्षयोपशमभाव बताववो छे एटले सम्यग्दर्शनपूर्वकनो
क्षयोपशमभाव लेवो.