Atmadharma magazine - Ank 305
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 6 of 45

background image
: फागण : २४९प आत्मधर्म : ३ :
क्षायिकभाव:आत्माना गुणनी संपूर्ण शुद्धदशा प्रगटे अने कर्मोनो सर्वथा क्षय थई
जाय–एवी दशा ते क्षायिकभाव छे.
आ त्रणे भावो निर्मळपर्यायरूप छे; ते अनादिना नथी होता, पण
आत्मानी ओळखाणपूर्वक नवा प्रगटे छे. अने ते भावो मोक्षनुं कारण छे
एम आगळ समजावशे.
औदयिकभाव: जीवनो विकारीभाव, जेमां कर्मनो उदय निमित्त होय छे. अनादिथी
बधा संसारीजीवोने औदयिकभाव होय छे. मोक्षदशा थतां तेनो सर्वथा
अभाव थाय छे. औदयिकभावो शुभ–अशुभ अनेक प्रकारनां छे, ते कोई
भावो मोक्षनुं कारण थता नथी. धर्मी जीवो पोताना ज्ञानने
औदयिकभावोथी भिन्न अनुभवे छे.
पारिणामिकभाव: आत्मानो त्रिकाळी सहज एकरूप स्वभाव. तेने ‘परमभाव’ कह्यो
छे, अन्य चार भावो क्षणिक छे तेथी तेमने ‘परमभाव’ न कह्या.
पारिणामिकरूप परमस्वभाव दरेक जीवमां सदाय विद्यमान छे.
* उपशमभाव एटले मोक्षमार्गनी शरूआत *
अरे, आ तो परमसत्य परमअमृत एवा आत्मस्वरूपनुं वर्णन छे. तारा
भावोनुं आ वर्णन छे. तारा भावोमां क्या प्रकारे आवरण छे ने क्या प्रकारे
विकास छे तेनी आ वात छे. पांच भावोमां उपशमभावने सौथी पहेलो कह्यो,
मोक्षमार्गनी शरूआत उपशमभावथी थाय छे. अंदर रागरहित शांत अकषाय
स्वरूपना वेदन वडे आत्माने उदयथी भिन्न जाण्यो त्यारे उपशमभाव प्रगट्यो ने
त्यारे उदयभावोने जेम छे तेम जाण्या. उपशमभाव वगर उदयने पण जाणशे
कोण? भेदज्ञान वगर तो उदयने जाणतां ते उदयभावने ज पोतानो स्वभाव मानी
लेतो हतो. हवे तेनाथी भिन्नता जाणतां मोक्षमार्ग शरू थयो. उपशमभावसहित
थयेलुं सम्यग्ज्ञान ते ज उदयने यथार्थ जाणे छे. तत्त्वार्थसूत्रमां पण पांच भावना
कथनमां पहेलो उपशमभाव लीधो छे.