देह अंत के समयमेें....तुमको न भूल जाउं....... दिनरात०
शत्रु अगर को होवे संतुष्ट उनको करदुं;
समताका भाव धरके सबसे क्षमा कराउं..... दिनरात०
त्यागुं अहार पानी औषधे विचार अवसर,
तुटे नियम न कोई द्रढता हदयमें धारुं.... दिनरात०
जागे नहि कषायें नहि वेदना सतावे;
तुमसे ही लो लगी हो, दुर्ध्यानको हटाउं..... दिनरात०
आत्मस्वरूपका चिंतन आराधना विचारुं;
अरहंत–सिद्ध–साधु रटना यही लगाउं..... दिनरात०
धर्मातमा निकट हो चरचा धरम सुनावे,
वो सावधान रकखें गाफल न होने देवे..... दिनरात०
जीनेकी हो न वांछा मरनेकी हो न ख्वाहिश
परिवार मित्र जनसें में मोहको भगाउं..... दिनरात०
भोग्या जो भोग पहले उनका न होवे सुमरन
मैं राजसंपदा या पद ईन्द्रका न चाहुं..... दिनरात०
सम्यक्त्व का हो पालन हो अंतमें समाधि,
शिवराम प्रार्थना यह जीवन सफल बनाउं..... दिनरात०