Atmadharma magazine - Ank 306
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९प आत्मधर्म : ११ :
देह–अंतके समयमें तुमको न भूल जाउं
दस वर्ष पहेलां सोनगढमां अकलंक–निकलंकनुं धार्मिक नाटक
विद्यार्थीओए भजव्युं हतुं. तेमां अकलंक अने निकलंक ज्यारे जेलमां हता
अने जीवननो पण संदेह हतो, त्यारे बंने भाईओ भावना भावे छे के–
दिनरात मेरे स्वामी.....मैं भावना ये भावुं;
देह अंत के समयमेें....तुमको न भूल जाउं....... दिनरात०
शत्रु अगर को होवे संतुष्ट उनको करदुं;
समताका भाव धरके सबसे क्षमा कराउं..... दिनरात०
त्यागुं अहार पानी औषधे विचार अवसर,
तुटे नियम न कोई द्रढता हदयमें धारुं.... दिनरात०
जागे नहि कषायें नहि वेदना सतावे;
तुमसे ही लो लगी हो, दुर्ध्यानको हटाउं..... दिनरात०
आत्मस्वरूपका चिंतन आराधना विचारुं;
अरहंत–सिद्ध–साधु रटना यही लगाउं..... दिनरात०
धर्मातमा निकट हो चरचा धरम सुनावे,
वो सावधान रकखें गाफल न होने देवे..... दिनरात०
जीनेकी हो न वांछा मरनेकी हो न ख्वाहिश
परिवार मित्र जनसें में मोहको भगाउं..... दिनरात०
भोग्या जो भोग पहले उनका न होवे सुमरन
मैं राजसंपदा या पद ईन्द्रका न चाहुं..... दिनरात०
सम्यक्त्व का हो पालन हो अंतमें समाधि,
शिवराम प्रार्थना यह जीवन सफल बनाउं..... दिनरात०
(ए अकलंक अने निकलंकना पात्र भजवनारा धीरेन्द्र अने
विनोद बंने युवान भाईओ आजे तो दिवंगत थई गया छे.....)