Atmadharma magazine - Ank 306
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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महावीर–जन्मनी
मंगल वधाई
(संपादकीय)
चैत्र सुद तेरस.....
वीरजन्मनी मंगल वधाई!
तीर्थंकरना जन्मनी ए वधाई क्षणमात्रमां विश्वभरमां
प्रसरी गई, ने त्रणलोकना जीवो क्षणभर सुख पाम्या....जेना
जन्मना प्रभावथी जगतमां अजवाळा थया ए आत्माना
दिव्यमहिमानुं चिंतन करतां घणाय जीवोना अंतरमां ज्ञानना अजवाळां प्रगटया.....धर्मनी
धारा वर्द्धमान थवा मांडी. तेथी एमनुं नाम पड्युं ‘वर्द्धमान.’
बिहारनी वैशाली अने कुंंडग्राम धन्य बन्या.....माता प्रियकारिणी अने सिद्धार्थराजा
जगतना माता–पितानुं बिरुद पाम्या......मोक्षमार्गी होवानी तेमने महोर लागी.
प्रभु वर्द्धमान आराधक तो हता ज, सिंहना भवथी मांडीने दस–दस भवथी पुष्ट करेली
आत्मसाधना आ भवे पूर्ण करवानी हती. दर्शनआराधना अने ज्ञान आराधना तो जन्मथी ज
साथे लाव्या हता, ए आराधना वर्द्धमान करतां करतां त्रीस वर्षनी वये तो संसारथी विरक्त
थईने प्रभुए चारित्रपद धारण कर्युं, ने ‘परमेष्ठी’ बन्या....माता–पिता बिराजमान, छतां एमना
मोहमां ए न रोकाया. आत्मसाधक वीरने मोहनां बंधन केम पालवे? मोहना बंधन तोडीने प्रभु
निर्मोही बन्या. तेमनी आत्मसाधना उग्र बनी.....अनेक परिसहो आव्या, अनेक उपद्रवो
आव्या....देवोएय एमने डगाववा प्रयत्न कर्यो......पण ए तो वीर हता..... स्वरूपनी साधनाथी
ए न डग्या ते न डग्या....साधकभावनी धाराने वर्द्धमान करी करी तेमणे केवळज्ञान साध्युं. ने फरी
एकवार केवळज्ञानकल्याणकना दिव्यप्रकाशथी विश्वना प्राणीओ झबकी ऊठ्या....जिनमहिमा सर्वत्र
प्रसरी गयो. राजगृहीमां विपुलाचल पर दिव्यध्वनिना धोध वह्या त्यारे ए वीरवाणी झीलीने
अनेकजीवो आत्मिकवीरता प्रगट करीने वीरमार्गे विचर्या......कोई गणधर थया तो कोई मुनि
थया, कोई अर्जिका थया, कोई श्रावक के श्राविका थयां, घणाय जीवो सम्यक्त्व पाम्या.–आम–
स्वपरमां धर्मवृद्धि करीने वर्द्धमाने पोतानुं नाम सार्थक कर्युं.....जीवन सार्थक कर्युं.
ए महावीरनो आदर्श झीलीने मुमुक्षुजीवो आजेय वीरतापूर्वक ए वीरनाथना
वीतरागीमार्गे विचरी रह्या छे. आपणे पण ए ज वीर–मार्गे जईए.... ‘जय महावीर’