Atmadharma magazine - Ank 306
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९प आत्मधर्म : १ :
आ अंकनो खास वधारो
वार्षिक लवाजम वीर सं. २४९प
चार रूपिया चैत्र
वर्ष २६ : अंक ६
राजकोटमां मंगल–प्रवचन
शुद्धात्मरसनी अमीधार वरसावतो
मेहूलो मधुर नादे गाजे छे ने हजारो तरस्या
जीवोनी तृषा छीपावे छे)
पू. गुरुदेव चैत्र सुद पांचम ने रविवार ता. २३–३–६९ ना रोज
सोनगढथी मंगलप्रस्थान करीने राजकोट पधार्या......ने जिनमंदिरमां
सीमंधरनाथना दर्शन करीने अर्घ चडाव्यो. जिनमंदिरनी वेदीनुं द्वार पूरुं
खूली गयुं होवाथी अहींनो देखाव पण सोनगढ जेवो लागे छे. निजमंदिर
आरसनी कारीगरीथी शोभे छे. मंडपमां गुरुदेवना स्वागतनी विधि
बाद, नियमसारनी ३८ मी गाथा उपर प्रवचन शरू करतां गुरुदेवे कह्युं के–
नियमसारनी आ ३८ मी गाथा मोक्षमार्गने माटे मांगळिक छे. आ भगवान
आत्मा सच्चिदानंद स्वरूप छे. तेने शरीरादि संयोगो तो शरण नथी. पुण्य–पापना संकल्प–
विकल्पो पण एने शरण नथी. जेना लक्षे शांति थाय, सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र थाय एवो
धु्रव आत्मस्वभाव ज शरणरूप ने उपादेय छे. संवर–निर्जरा वगेरे एक समयनी पर्याय
जेटलो पण परमार्थ जीव नथी; परमार्थ जीव केवो छे ते वात जीवे अंतरमां रुचि करीने
सांभळी पण नथी. जीवनुं ए परमार्थ स्वरूप आचार्यदेवे आ गाथामां बताव्युं छे.
शरीरादि संयोगो तो कदी आत्माना थईने रह्या नथी; रागादि विकारी भावो पण
आत्माना स्वभावरूप थईने रह्या नथी; अने अंतरमां संवर–