: ४० : आत्मधर्म : चैत्र : २४९प
मानवमहेरामण वच्चे पण जिनेन्द्र भगवान एकाकीपणे शोभता हता....अने जाणे के एम
उपदेशता हता के संसारनी बेसुमार भीड वच्चे अलिप्त रहेलो आत्मा निज स्वरूपमां शोभे
छे; ने एवा आत्माना महिमानो ज आ महोत्सव छे...वीस हजारनी भीडने के हाथीना
टोळाने जोवा करतां तेमनी वच्चे रहेला एकाकी जिनने जोवा ते आ रथयात्रानुं रहस्य हतुं.
ए लांबी रथयात्रानी शरूआतनो के अंतनो छेडो जोवा माटे घणीवार सुधी महेनत करवा
छतां, ऊंचा स्थान परथीये एनो छेडो देखातो न हतो. ज्यारे शरूनो भाग गाममां फरीने
प्रतिष्ठा–मंडपमां पाछो आवतो हतो त्यारे अंतिम भाग हजी मंडपनी बहार नीकळतो हतो.
गामना झरूखाओ ने छापराओ पण प्रेक्षकोथी भरचक हता.....नानां बच्चांओने आ बधुं
बताडवा माटे ग्राम्यजनो खभे चडावीने रथयात्रामां साथे फरता हता......ने क््यांक समजीने
तो क्यांक वगर समज्ये, चारेकोर भक्तिनी रमझट चालती हती. पंदर हजार जेटला
माणसोए प्रतिष्ठानी प्रसादीरूप लाडु खाधा हशे...सांज पडी त्यां तो वाहनोना वाहनो
भरीभरीने माणसो प्रस्थान करवा लाग्या. प्रतिष्ठा महोत्सवनी खुशालीमां रणासणना
भक्तोना हैयां नाची रह्या हता. आखोय दिवस जिनमंदिरमां दर्शकोनी भीड चालु ज हती.
रणासण गाममां जैनश्रावकोनी संख्या करतां जिनबिंबोनी संख्या वधारे छे.
फागण वद त्रीजनी पहेली सवारमां गुरुदेव जिनमंदिरे पधार्या, ने भावपूर्वक
जिनभगवंतोना दर्शन करीने भक्ति गवडावी....ए रीते रणासणमां महान मंगलकारी
पंचकल्याणकपूर्वक जिनेन्द्र भगवंतोनी प्रतिष्ठा करीने हिंमतनगर तरफ प्रस्थान कर्युं.
श्री जिनेन्द्र–पंचकल्याणक महोत्सवनो जय हो!
* * * * *
हिंमतनगरमां भावभीना मंगलपूर्वक स्वाध्यायमंदिरनुं उद्घाटन
रणासणमां पंचकल्याणक करीने फागण सुद त्रीजना रोज गुरुदेव हिंमतनगर
पधारतां भव्य धामधूमथी स्वागत थयुं. बे वर्ष पहेलां ज्यां पंचकल्याणक उत्सव
उजवायेल त्यांना जिनालयमां महावीर भगवान अने शांतिनाथ वगेरे भगवंतोना
भावथी दर्शन कर्या. ने पछी गुरुदेवना सुहस्ते स्वस्तिकविधानपूर्वक ईंदोरना शेठश्री
राजकुमारसिंहजीना हस्ते नुतन स्वाध्यायमंदिरनुं उद्घाटन थयुं. गुरुदेवना मंगलाचरण
वखते अत्यंत उल्लासभर्युं वातावरण फेलाई गयुं हतुं. तीर्थंकरभगवंतोए अने
कुंदकुंदाचार्यदेवादि सन्तोए जे वीतरागमार्ग कह्यो ते ज मार्गनुं उद्घाटन