Atmadharma magazine - Ank 307
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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* श्री कहान–रत्नचिंतामणि–जयंतिमहोत्सव विशेषांक *
वार्षिक लवाजम वीर सं. २४९प
चार रूपिया वैशाख
वर्ष २६ : अंक ७
संपादकीय
विदेहक्षेत्रना जे तीर्थंकरभगवाननी वाणी कुंदकुंदाचार्यदेवे साक्षात्
सांभळी...ए ज तीर्थंकरभगवाननी वाणीनी प्रसादी आपणने आजे
अहीं प्राप्त थाय छे–ते केवी महान हर्षनी वात छे! अहा, ए दिव्यध्वनिए
जे शुद्धात्मा बताव्यो ते शुद्धात्मा आजे पण आपणे अंतरमां जोई शकीए
अने ए रीते तीर्थंकरभगवाननी वाणीनुं रहस्य पामी शकीए–एवो
अपूर्व उपदेश आजे एक भावितीर्थंकर आपणने साक्षात् संभळावी रह्या
छे. वाह! आत्महित माटेनो केवो अपूर्व सुयोग मळ्‌यो छे!
शुद्धात्मअनुभूति प्रगट करवा माटे अत्यारे आपणे माटे शुं
विदेहमां ने भरतमां कांई फेर छे? कहानगुरुनी देशना झील्या पछी
निःशंक रीते आपणे कही शकीए के ना; आत्मअनुभूति प्रगट करवा माटे
तो आपणे आजे विदेहक्षेत्र के भरतक्षेत्र बंने सरखां ज छे. कहानगुरुना
प्रतापे आत्मअनुभूति प्राप्त करवानुं आपणने पण विदेहना जीवो जेवुं ज
सुगम बनी गयुं छे. अनुभूतिनो मार्ग बतावीने गुरुदेवे आ भरतक्षेत्रनुं
गौरव वधार्युं छे.....ने महाविदेहना एक नानकडा भाई जेवुं तेने बनावी
दीधुं छे. विदेहथी आवेला आ महात्मा द्वारा धर्मनी आवी महान
प्रभावना थती देखीने ए विदेहना धर्मप्रेमी साधर्मीओ पण गौरव
अनुभवता हशे... के वाह! अहींथी गयेला ए राजकुमार भरतक्षेत्रमां
जैनधर्मनी केवी उन्नति करी रह्या छे! अने भरतक्षेत्रना जीवो केवा भावथी
एमनो रत्नचिंतामणिजन्मोत्सव उजवी रह्या छे! खरेखर, भरतक्षेत्रने
माटे तो ए धर्मना रत्नचिंतामणि ज छे.
अहो, साधर्मीजनो! आवा रत्नचिंतामणिने पामीने आपणे
तेमनी पासेथी मनोवांछित एवा चैतन्यचिंतामणिनी प्राप्ति करीए.
चैतन्यरत्नचिंतामणि एवा हे गुरुदेव! अमारा मनोरथ पूर
करोजी.
–हरि