Atmadharma magazine - Ank 307
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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* श्री कहान–रत्नचिंतामणि–जयंतिमहोत्सव विशेषांक *
: वैशाख : २४८प आत्मधर्म : ३७ :
आवता हता ने यात्रिकोथी सोनगढ भर्युं रहेतुं. जैनसमाजनी घणीखरी आगेवान
व्यक्तिओ सोनगढ आवी गई हती. मानस्तंभना उत्सवनी तो शी वात? ए
नेमप्रभुना पंचकल्याणक, ए जन्मोत्सव, ए जान अने वैराग्यप्रसंग, ए
सहस्राम्रवनमां दीक्षा, नेममुनिने आहारदाननो ए भावभीनो प्रसंग, ३२ प्रतिमाओ
उपर गुरुदेवना हस्ते अंकन्यास, ए समवसरण ने ए गीरनार–ए बधाय द्रश्यो पछी,
विदेहीनाथ सीमंधर भगवान ज्यारे मानस्तंभ उपर पधार्या ने परमभक्तिथी
गुरुकहाने एमनी प्रतिष्ठा करी त्यारे चारेकोर जयजयकार ने आनंदनुं वातावरण
छवाई गयुं. –अने पछी थयो ए गगनविहारी मानस्तंभनो महाअभिषेक. छेल्ली
रथयात्रानी तो शी वात! सौराष्ट्रमां मानस्तंभनो प्रतिष्ठा महोत्सव अद्भुत ने अपूर्व
हतो. एमां चारेकोरथी भारतना हजारो भक्तोए भाग लीधो हतो. उत्सवमां आवेला
अनेक त्यागीओ पण ए वखते गुरुदेवथी प्रभावित थया हता. ए दिवसोमां
सुवर्णधामनी शोभा अद्भुत हती. एक मोटी नगरी रचाई हती–एनुं नाम हतुं.
‘विदेहधाम’ उत्सवमां आवनार कहेता के खरेखर, अमे विदेहमां आव्या होईए एवुं
लागे छे. प्रतिष्ठा पछी मंच बांधल होवाथी गुरुदेव सहित अनेक भक्तजनो
अवारनवार उपर जईने मानस्तंभनी यात्रा करता ने उपर बेठा बेठा भक्ति–पूजन
करता; पू. बेनश्री–बेन कोई कोईवार तो आश्चर्यकारी भक्ति करावता. ए बधायना
मीठां संभारणां आजेय आनंद पमाडे छे. गुरुदेव जो के हजी सुधी सौराष्ट्रनी बहार
विचर्या न हता तोपण आ उत्सवमां ए स्पष्ट देखायुं के गुरुदेव हवे मात्र सोनगढ के
सौराष्ट्रनी ज नहि परंतु भारतभरना दि. जैनसमाजनी एक महान विभूति छे. वैशाख
सुद दसमे ज्यारे मानस्तंभप्रतिष्ठाने एक महिनो पूरो थयो त्यारे
सांजे आश्रममां पू. बेनश्रीबेने जे अचिंत्यभक्ति करावी ते सोनगढना
भक्तिना ईतिहासमां अजोड हती. मानस्तंभ उपर जवानो मंच जेठ सुद पांचम सुधी
रह्यो हतो, ने छेवटे जेठ सुद पांचमे महान अभिषेक तथा पूजन–भक्ति करीने, अने
गुरुदेवे मानस्तंभ उपर खास भक्ति करीने, पछी मंच छोडी नांखतां, खुल्ला आकाशमां
मानस्तंभनी शोभा गंधकूटी जेवी शोभती हती.
एक तरफ गुरुदेवनो प्रभाव वधतो चाल्यो ने बीजी तरफ प्रवचनमां
तत्त्वज्ञाननी स्पष्टता वधु खीलती गई. श्वेतांबरमत ने दिगंबरमत वच्चे मुख्य
सिद्धांतभेद क्यां छे ते गुरुदेवे वधु स्पष्टपणे प्रसिद्ध कर्युं. निश्चय–व्यवहार के उपादान–
निमित्त वगेरे अनेक बाबतोनी स्पष्टता पण वधु ने वधु खीलवा लागी ने वधु ने वधु
जिज्ञासुओ तेनो लाभ लेवा लाग्या.
उमराळा–जन्मभूमिस्थान
पू. गुरुदेवनी जन्मभूमि उमराळा सोनगढथी मात्र ९ माईल दूर छे. त्यांना