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६०. ज्ञानसुधारस केवी रीते पीवो? स्वसन्मुख श्रुतज्ञानरूपी अंजलि वडे ज्ञानसुधारस पीओ.
६१. ध्याननी सिद्धि एटले अतीन्द्रिय आनंदनो अनुभव; ए ज उपदेशनो सार छे.
६२. सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र प्रगटवामां शरीरनी सहाय नथी, विकल्पनी सहाय नथी.
६३. अंदर शुद्धस्वभावना श्रद्धा–ज्ञान–रमणतारूप निर्मळ वीतराग अंशो ते साचो
६प. साचो मोक्षमार्ग जाणतां ज तने रागमां आत्मबुद्धि छूटी जशे ने आत्मशुद्धि थशे.
६६. जिनभगवानना कहेला वीतरागमार्गने बीजाना मार्गो–साथे सरखावी शकाय नहि.
६७. जिनरंजन करनारा एटले के जिनमार्गने जाणीने तेनी रुचिकरनारा लोकरंजन
६९. जे रागनी रुचि करे छे तेने वीतरागस्वभावी आत्मानी आराधनानुं लक्ष नथी.
७०. वीतरागमार्गना आराधक जीवो रागनी रुचि केम करे? अमृत मळ्या पछी झेर
७३. कारण–कार्य एक जातनां होय छे माटे बुद्धिमान मुमुक्षु शुद्ध कारणने सेवे छे.
७४. ते ज खरो बुद्धिवंत–भेदज्ञानी छे के जे शुद्ध–अशुद्ध भावोनुं पृथक्करण करे छे.
७प. मोक्षना साधको शुद्धभावरूप मोक्षमार्गमां वच्चे रागनी भेळसेळ करता नथी.
७६. पंचमकाळमां पण जेम मुनिदशा वस्त्र वगरनी छे तेम मोक्षमार्ग राग वगरनो छे.
७७. सीमंधर भगवान वगेरे तीर्थंकरभगवंतो आ जंबुद्विपमां अत्यारे बिराजी रह्या छे.
७८. विदेहक्षेत्रना धर्मकर्ता ते जीवन्तस्वामी शुद्धमोक्षमार्ग उपदेशी रह्या छे.
७९. ज्ञाननो सार ए छे के प्रथम शुद्धआत्मानी भावनाथी भावशुद्धि प्रगट करवी.
८०. आवी भावशुद्धिना मार्गदर्शक रत्नचिंतामणि गुरुकहानना चरणमां हरिनां हजार वंदन.