Atmadharma magazine - Ank 307
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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* श्री कहान–रत्नचिंतामणि–जयंतिमहोत्सव विशेषांक *
: वैशाख : २४९प आत्मधर्म : ४७ :
३७. सिद्धभगवंतो जे मार्गे चाल्या ते मार्गे चालवुं ते ज मुमुक्षुनुं काम छे.
३८. मोक्षहेतु धर्म शुद्ध–अरागीभाव छे; राग ते मोक्षहेतु नथी, बंधहेतु छे.
३९. शुद्ध जैनमार्गमां गरबड चाले तेम नथी, ए तो अरिहंतोनो मार्ग छे.
४०. भगवान पोते भवरहित छे, ने भवरहित थवानो पुरुषार्थ भगवाने उपदेश्यो छे.
४१. भगवाननी वाणी स्वसन्मुखता करावे छे ने परम आनंदने पमाडे छे.
४२. सम्यग्द्रष्टि ते
जिन छे, –ते सम्यक्भाववडे मिथ्यात्वशत्रुना विजेता छे.
४३. अहा, भगवाननी वाणीनी मधुरतानी शी वात? अने तेना वाच्यना महिमानी शी वात?
४४. जिनवाणीना वाच्यनुं घोलन करतां भावश्रुतनो अपूर्व आह्लाद अनुभवाय छे.
४प. ‘भगवाननो उपदेश अमारा माटे छे; अमारा उपर अनुग्रह करीने भगवाने
शुद्धात्मानो उपदेश दीधो छे.
४६. हुं ज परमात्मा छुं–आवा स्वात्मचिंतन वडे आनंदनो अनुभव थाय छे.
४७. शुद्धात्मप्राप्ति केवळीप्रभुना वीतरागमार्ग सिवाय बीजे क््यांय थती नथी.
४८. वीतरागता वडे मोहनो क्षय ने शुद्धात्मानी प्राप्ति ते जिनवाणीनो सार छे.
४९. भाई, तारा मोक्षनी रमत तारी पर्यायमां समाय छे. बहार जेवुं पडे तेम नथी.
प०. पर्यायने शुद्धस्वभावमां जोड...ने परभावोने छोड, –एनुं नाम मोक्ष.
प१. तीर्थंकरोए साधेलो ने कहेलो वीतरागमार्ग सन्तोए स्वानुभवपूर्वक प्रसिद्ध कर्यो छे.
प२. अत्यारे विदेहक्षेत्रमां जीवंत तीर्थंकरभगवंतो वीतरागमार्ग प्रकाशी रह्या छे.
प३. विदेहक्षेत्रना जीवंतस्वामीनी वाणी सांभळीने भरतक्षेत्रमां कुंदकुंदस्वामीए
मोक्षमार्ग जीवंत राख्यो.
प४. साधक जीवो आत्मिक आनंदरस पीतांपीतां स्वयं मोक्षमां चाल्या जाय छे.
पप. ‘
जैसा भावै वैसा होवे’ –शुद्धात्माने भावतां आत्मा शुद्ध थाय छे.
प६. अंदरनी गूफामां गुप्त आत्माने ध्यानवडे अनुभवगोचर करतां गुप्तनिधि पमाय छे.
प७. आत्माना शुद्धस्वभावनी धून वारंवार घूंटवा जेवी छे, तेमां आनंद छे.
प८. आनंदरस पीतांपीतां सिद्धभगवाने मोक्ष साध्यो ने सदाकाळ तेओ आनंदरस पीए छे.