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३८. मोक्षहेतु धर्म शुद्ध–अरागीभाव छे; राग ते मोक्षहेतु नथी, बंधहेतु छे.
३९. शुद्ध जैनमार्गमां गरबड चाले तेम नथी, ए तो अरिहंतोनो मार्ग छे.
४०. भगवान पोते भवरहित छे, ने भवरहित थवानो पुरुषार्थ भगवाने उपदेश्यो छे.
४१. भगवाननी वाणी स्वसन्मुखता करावे छे ने परम आनंदने पमाडे छे.
४२. सम्यग्द्रष्टि ते
४४. जिनवाणीना वाच्यनुं घोलन करतां भावश्रुतनो अपूर्व आह्लाद अनुभवाय छे.
४प. ‘भगवाननो उपदेश अमारा माटे छे; अमारा उपर अनुग्रह करीने भगवाने
४७. शुद्धात्मप्राप्ति केवळीप्रभुना वीतरागमार्ग सिवाय बीजे क््यांय थती नथी.
४८. वीतरागता वडे मोहनो क्षय ने शुद्धात्मानी प्राप्ति ते जिनवाणीनो सार छे.
४९. भाई, तारा मोक्षनी रमत तारी पर्यायमां समाय छे. बहार जेवुं पडे तेम नथी.
प०. पर्यायने शुद्धस्वभावमां जोड...ने परभावोने छोड, –एनुं नाम मोक्ष.
प१. तीर्थंकरोए साधेलो ने कहेलो वीतरागमार्ग सन्तोए स्वानुभवपूर्वक प्रसिद्ध कर्यो छे.
प२. अत्यारे विदेहक्षेत्रमां जीवंत तीर्थंकरभगवंतो वीतरागमार्ग प्रकाशी रह्या छे.
प३. विदेहक्षेत्रना जीवंतस्वामीनी वाणी सांभळीने भरतक्षेत्रमां कुंदकुंदस्वामीए
पप. ‘
प७. आत्माना शुद्धस्वभावनी धून वारंवार घूंटवा जेवी छे, तेमां आनंद छे.
प८. आनंदरस पीतांपीतां सिद्धभगवाने मोक्ष साध्यो ने सदाकाळ तेओ आनंदरस पीए छे.