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१६. अशरीरी आत्मा अज्ञानथी शरीरनो भार लईने चारगतिमां भमे छे, ते शरम छे.
१७. देहथी भिन्न अशरीरी चैतन्यने देखतां शरमजनक जन्मो टळी जाय छे.
१८. ध्येय ज जेनुं खोटुं होय तेने साचुं ध्यान थई शके नहि.
१९. जेमां धर्मनुं अवतरण थाय ते साचो धर्म–अवतार छे.
२०. सिद्धभगवंतोनुं स्वरूप लक्षमां लेनारने आत्मानुं शुद्धस्वरूप लक्षमां आवे छे.
२१. सिद्धमां जे छे ते मारुं स्वरूप; सिद्धमां जे नहि ते मारुं स्वरूप नहीं.
२२. सिद्धने पुण्य–होय? –ना; तो पुण्य ते आत्मानुं स्वरूप नथी.
२३. भेदज्ञान द्वारा निजस्वरूपनी ओळखाण करीने जीव भवसमुद्रने तरे छे.
२४. शुद्धात्मानी साची श्रद्धा ते मोक्षनो सिक्को छे.
२प. ध्यानस्थ जैनमुनि ए पोते साक्षात् मोक्षमार्ग छे; तेने ओळखतां मोक्षमार्ग
२७. मोक्षनी भावनावाळो पुण्यने न ईच्छे, केमके पुण्य पण संसार छे.
२८. सर्वज्ञ–वीतरागदेवनी ओळखाण वगर, तेमना कहेला वीतरागमार्गने तुं क्यांथी साधीश?
२९. केवळीभगवानना अतीन्द्रिय सुखनी श्रद्धा करनार जीव मोक्षनी नजीक छे.
३०. मुमुक्षु एटले मोक्षमार्गनो वेपारी, ते शुद्धोपयोगरूप मोक्षमार्गने ईच्छे छे.
३१. जिनोपदेश सांभळतां मुमुक्षु जीव उल्लसी जाय छे ने तेनी परिणति अंतर्मुख थाय छे.
३२. समकितीनां परिणाम शुद्धात्म–सन्मुख छे; मिथ्याद्दष्टिनां परिणाम शुद्धात्माथी
३४. तत्त्वार्थश्रद्धान एटले शुद्धात्मश्रद्धान ते सम्यक्त्व छे, ते धर्मनुं मूळ छे.
३प. वीतराग थईने भवसागर तराय छे, रागने भेगो राखीने भवसागरने तरातुं नथी.
३६. आपणो स्वभाव राग वगरनो; आपणा ईष्टदेव राग वगरना; आपणो मार्ग