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२. चैतन्य चिंतामणि एवा निजात्माना चिंतनथी जिनपदनो प्रकाश थाय छे.
३. जेणे राग साथेनी संधि तोडी ने उपयोग साथे संधि जोडी, ते साधक छे.
४. ज्ञानानंद स्वभाव तरफ वळवुं ए ज भवरोग मटाडवानी दवा छे.
प. तीर्थंकरगगनमां केवळज्ञानसूर्यनो उदय थतां मोक्षसाधक भव्यकमळ प्रफूल्लित थया.
६. पोतामां ज परमात्मपद देख्युं तेने भगवान पासे कांई मांगवानी ईच्छा न रही.
७. अनंता केवळज्ञान अने सिद्धपद आत्माना भंडारमां ज भरेला छे.
८. राग वगर कांई आत्मा मरी नहि जाय, पण आनंदमय जीवनथी जीवतो रहेशे.
९. स्वर्ग मळे ते धर्मनुं फळ नथी; धर्मनुं फळ तो मोक्ष छे.
१०. हे जीवो! तमे सम्यक्त्वादि भावोने साधो...ने मिथ्याभावोने छोडो.
११. हे जीव! मोक्षमां जवा माटे शुद्धसम्यक्त्वने ज तारुं साथीदार बनाव.
१२. सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रधारक मुनिवरो अने धर्मात्माओ परम सुखी छे.
१३. आनंद स्वभावथी भरेलो आत्मा जेनी द्रष्टिमां न आवे–ते क््यांथी सुखी होय?
१४. बडी भक्तिपूर्वक शुद्धात्मानी आराधना करवी ते जिनवाणीनो साचो विनय छे.