Atmadharma magazine - Ank 307
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 47 of 66

background image
* श्री कहान–रत्नचिंतामणि–जयंतिमहोत्सव विशेषांक *
: वैशाख : २४९प आत्मधर्म : ४प :
१. सिद्धभगवंतो शुद्धआत्माने ध्येय बनावीने ज सिद्ध परमात्मा थाय छे.
२. चैतन्य चिंतामणि एवा निजात्माना चिंतनथी जिनपदनो प्रकाश थाय छे.
३. जेणे राग साथेनी संधि तोडी ने उपयोग साथे संधि जोडी, ते साधक छे.
४. ज्ञानानंद स्वभाव तरफ वळवुं ए ज भवरोग मटाडवानी दवा छे.
प. तीर्थंकरगगनमां केवळज्ञानसूर्यनो उदय थतां मोक्षसाधक भव्यकमळ प्रफूल्लित थया.
६. पोतामां ज परमात्मपद देख्युं तेने भगवान पासे कांई मांगवानी ईच्छा न रही.
७. अनंता केवळज्ञान अने सिद्धपद आत्माना भंडारमां ज भरेला छे.
८. राग वगर कांई आत्मा मरी नहि जाय, पण आनंदमय जीवनथी जीवतो रहेशे.
९. स्वर्ग मळे ते धर्मनुं फळ नथी; धर्मनुं फळ तो मोक्ष छे.
१०. हे जीवो! तमे सम्यक्त्वादि भावोने साधो...ने मिथ्याभावोने छोडो.
११. हे जीव! मोक्षमां जवा माटे शुद्धसम्यक्त्वने ज तारुं साथीदार बनाव.
१२. सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रधारक मुनिवरो अने धर्मात्माओ परम सुखी छे.
१३. आनंद स्वभावथी भरेलो आत्मा जेनी द्रष्टिमां न आवे–ते क््यांथी सुखी होय?
१४. बडी भक्तिपूर्वक शुद्धात्मानी आराधना करवी ते जिनवाणीनो साचो विनय छे.