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आवा भगवान आत्मानुं अनादिकाळथी अज्ञानने लीधे जे विस्मरण थयुं छे. ते
अमंगळ छे, –दुःख छे, अने सत्समागमे श्रवण करीने आवा आत्मानुं स्मरण करवुं,
ओळखाण करवी, महिमा करवो ते मंगळ छे, ने आवुं मंगळ ते मोक्षनुं कारण छे.
अनुसरण करवानो) उपदेश आप्यो. प्रभो! बहारनी बीजी वातो (रागनी वातो) तो
तें अनंतवार सांभळी. ते तो तने सहेली लागे छे, पण राग वगरनो शुद्ध ज्ञानानंद
आत्मा पोते शुं चीज छे ते कदी तें ज्ञानी पासेथी यथार्थ सांभळ्युं नथी, समजणमां लीधुं
नथी. तेथी तने अघरुं लागे तोपण ते समज्ये ज छूटको छे. बापु! आवा अवतारमां
तो आ समजवा जेवुं छे. एक क्षणमां देह छूटी जतो नजरे देखाय छे. मनुष्यपणुं
पामीने जो तें आत्मानी संभाळ न करी तो तें शुं कर्युं? तुं बाह्य विषयोनो अर्थी थयो,
धननो, रागनो के पुण्यनो अर्थी थयो, पण आत्मानो अर्थी न थयो तो तारा
जन्ममरणनो आरो आवे तेम नथी.
कह्या हता के अनादिथी परिणमतो आत्मा तो संसारमां मुसाफर जेवो छे, तेने आ बधा
संयोगो आवे छे ते तो छाया जेवा छे, ते कांई तेनुं स्वरूप नथी. संयोगथी जुदो ने जुदो
अनादिथी ध्रुव रहेलो आत्मा, तेनो खरो वेपार ज्ञान छे, एवा आत्माने धु्रव चिदानंद
स्वरूपे ओळखवो ते अपूर्व कल्याण छे, ने ते करवा जेवुं छे. संयोगो छाया जेवा छे,
तेनो आत्मा जाणनारा छे; पोताना स्वभावने तेमज परने जाणे एवो स्व–परप्रकाशक
आत्मा छे. आत्मानो चैतन्यवेपार संयोगथी ने रागथी भिन्न छे. पालेजमां गुरुदेव
चार दिवस रह्या, ने आनंदपूर्वक अनेकविध चर्चाओ करी. आ प्रसंगे घाटकोपरनी
भजन मंडळी पण आवेल ने विविध भक्ति करावेल हती. ‘श्रुतधाम’ अंकलेश्वर तेमज
‘शीतलधाम’ सजोद ए बंने पण पालेजथी नजीक पचीसेक माईल पर छे. अंकलेश्वर
पधारनारा अने सत् श्रुतनी ज्योतने प्रकाशीत राखनारा परम संत भूतबलि
मुनिराज (जेमणे अंकलेश्वरमां षट्खंडागमनी रचना पूर्ण करी अने श्रुतनो भव्य
उत्सव उजवायो) –ते मुनिराजे अंकलेश्वर जतां आवतां आ पालेजपुरीने पण