
हतुं. केटलाय मुमुक्षु भाई–बहेनो पालेजथी अंकलेश्वर अने सजोदनां दर्शने गया हता.
अहा, ए श्रुतधर संतोनी आ भूमि! –रत्नत्रयधारी संतोनो केवो महिमा प्रसिद्ध करे
छे! ने गूफामां बिराजमान ए शीतलताना भंडार शीतलजिनेन्द्र चैतन्यमां केवी शीतल
उर्मिओ जगाडे छे!! आ प्रतिमाजी चोथा काळना लागे छे. चार प्राचीन मंदिरोमां पण
अनेक विशेषता सहित जिनबिंबो बिराजे छे. नेमप्रभुना मंदिरमां पार्श्वनाथ प्रभुने
कळाकारे अंतरीक्ष बताव्यो छे–ते देखाव सुंदर छे. ए सिवाय पींछी–कमंडल सहित
मुनिवरोनी प्राचीन प्रतिमाओ पण अहीं जोवा मळे छे, संभव छे के धरसेन–पुष्पदंत–
भूतबली मुनिवरो साथे पण तेने संबंध होय. महावीर प्रभुना जे मंदिरना स्थानमां
लागे छे. मुमुक्षुओ अंकलेश्वरने तेलना धाम तरीके नहि परंतु जिनवाणीरूप अमृतना
धाम तरीके जुए छे. पालेज पछी गुरुदेव सुरत पधार्या. सुरत पछी कासा
पधार्या....गुजरात छोडीने हवे महाराष्ट्रमां आव्या. वन जंगलना वातावरण वच्चे
निवृत्तिधाममां आखो दिवस रह्या ने आ भव तेमज परभवनी केटलीये आनंदकारी
वात गुरुदेवे करी. गुरु मुखथी धर्मात्माओनां जीवननी कथा सांभळतां आनंद थतो
हतो. कासाथी मुंबई तरफ जतां पहेलां रातना छेल्ला भागमां गुरुदेवे अत्यंत
आह्लादकारी एक मंगल स्वप्न जोयुं. आकाशमांथी कोई अपूर्व वधामणी सहित एक
परबिडीयुं अचानक उपरथी कोई गुरुदेव तरफ नांखे छे; आवुं अद्भुत परबिडीयुं
हाथमां आवतां जाणे भगवाननो कोई सन्देश आव्यो होय –एम अतिशय आह्लादथी
गुरुदेवे सवारमां कह्युं के अहा! एवो आनंद ए वखते थयेलो के जाणे मोक्ष ज हाथमां
आवी गयो होय! जाणे मोक्षनी लोटरी लागी होय! –एम स्वप्नमां घणा
आह्लादपूर्वक ए परबिडियानी अंदरनुं लखाण वांचवा खूब सावधानीथी (अंदरना
कागळनो एक्केय अक्षर फाटी न जाय ते रीते) गुरुदेवे तेनो एक खूणो जरा
खोल्यो....ने हजी वांचवा जाय छे त्यां तो आंख खूली गई. गुरुदेव कहे छे के अद्भुत
हतुं ए उत्तम स्वप्न! कोई उत्तम मंगळफळनी ए आगाही छे. आवा आह्लादपूर्वक,
विदेहीनाथने वारंवार याद करता करता गुरुदेव थाणा थईने चैत्रवद ११ ना रोज
मुंबई नगरीमां पधार्या. थाणामां पोपटलालभाई वोरा अने तेमना परिवारे खूब
भक्तिथी लाभ लीधो; वच्चे घाटकोपरनुं नवीन