
केवळज्ञानादि परम ऋद्धि धारक सन्तोनुं स्मरण करीने चोसठ ऋद्धि मंडल–विधान थयुं
हतुं. अने प्रवचन शरू थतां पहेलां पू. गुरुदेवना जीवनपरिचयनुं नवीन पुस्तक प्रगट
करवामां आव्युं हतुं. जेम पांच वर्ष पहेलां मुंबईमां गुरुदेवना हीरक जयंति महोत्सव
प्रसंगे अभिनंदन ग्रंथ प्रगट करीने शास्त्रीजी द्वारा अर्पण करायेल, तेम आ रत्न
चिंतामणि–जयंति महोत्सव प्रसंगे पण कोई सुंदर ग्रंथ प्रगट करवानी मुंबई मुमुक्षु
मंडळनी भावना हती. ते अनुसार गुरुदेवना जीवननो विस्तृत परिचय, तेमज पवित्र
हस्ताक्षरो वगेरेनो संग्रह करीने एक सुंदर पुस्तक ब्र. हरिभाईए तैयार करेल, ते
आजना मंगलप्रसंगे प्रमुख श्री रमणीकलालभाई शेठना हस्ते गुरुदेवने अर्पण
करवामां आव्युं हतुं. आ पुस्तकना मुखपृष्ठ उपर, सीमंधर भगवान साथे गुरुदेवनो
संबंध दर्शावतुं मधुर भाववाही द्रश्य चांदीमां कोतरवामां आव्युं छे. आ सुशोभित
पुस्तक दरेक जिज्ञासुने गमी जाय तेवुं छे. त्रण रूपियानी पडतर किंमतनुं आ पुस्तक
मात्र एक रूपियानी किंमते आपवामां आव्युं छे.
मुंबई जेवी महानगरीमां हजारो माणसो वच्चे चाली रही छे, ते जीवोनां महान भाग्य
छे. मोटुं नगर हो के नानुं गामडुं हो, पण जेने पोतानुं हित करवुं होय तेणे आत्मानी
आ वात सांभळीने लक्षमां लेवा जेवी छे.
भावो छे. तेने अने ज्ञानने एकपणुं नथी पण जुदाई छे. ज्ञान तो सहज शांत
आनंदस्वरूप छे, ने रागादि भावो आकुळतारूप छे, दुःखरूप छे. आवी