Atmadharma magazine - Ank 307
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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* श्री कहान–रत्नचिंतामणि–जयंतिमहोत्सव विशेषांक *
: प४ : आत्मधर्म : वैशाख : २४९प
करवा चाहतो होय तेम हर्ष भरी छोळो ऊछाळतो हतो. आजना मंगल प्रसंगे
केवळज्ञानादि परम ऋद्धि धारक सन्तोनुं स्मरण करीने चोसठ ऋद्धि मंडल–विधान थयुं
हतुं. अने प्रवचन शरू थतां पहेलां पू. गुरुदेवना जीवनपरिचयनुं नवीन पुस्तक प्रगट
करवामां आव्युं हतुं. जेम पांच वर्ष पहेलां मुंबईमां गुरुदेवना हीरक जयंति महोत्सव
प्रसंगे अभिनंदन ग्रंथ प्रगट करीने शास्त्रीजी द्वारा अर्पण करायेल, तेम आ रत्न
चिंतामणि–जयंति महोत्सव प्रसंगे पण कोई सुंदर ग्रंथ प्रगट करवानी मुंबई मुमुक्षु
मंडळनी भावना हती. ते अनुसार गुरुदेवना जीवननो विस्तृत परिचय, तेमज पवित्र
हस्ताक्षरो वगेरेनो संग्रह करीने एक सुंदर पुस्तक ब्र. हरिभाईए तैयार करेल, ते
आजना मंगलप्रसंगे प्रमुख श्री रमणीकलालभाई शेठना हस्ते गुरुदेवने अर्पण
करवामां आव्युं हतुं. आ पुस्तकना मुखपृष्ठ उपर, सीमंधर भगवान साथे गुरुदेवनो
संबंध दर्शावतुं मधुर भाववाही द्रश्य चांदीमां कोतरवामां आव्युं छे. आ सुशोभित
पुस्तक दरेक जिज्ञासुने गमी जाय तेवुं छे. त्रण रूपियानी पडतर किंमतनुं आ पुस्तक
मात्र एक रूपियानी किंमते आपवामां आव्युं छे.
जीवन परिचय–पुस्तकना प्रकाशन बाद गुरुदेवनुं प्रवचन थयुं. आजे प्रवचनमां
आनंदभर्या वातावरण वच्चे गुरुदेवे समयसारनी ७१ मी गाथा वांची.
मुंबई नगरीमां वैशाख सुद बीजनुं मंगल प्रवचन
जन्मोत्सवनी उमंगभरी उजवणी बाद पंदर हजारनी सभामां प्रवचन करतां
गुरुदेवे शरूआतमां महिमापूर्वक कह्युं के आ समयसारनी अध्यात्म वात आजे आ
मुंबई जेवी महानगरीमां हजारो माणसो वच्चे चाली रही छे, ते जीवोनां महान भाग्य
छे. मोटुं नगर हो के नानुं गामडुं हो, पण जेने पोतानुं हित करवुं होय तेणे आत्मानी
आ वात सांभळीने लक्षमां लेवा जेवी छे.
भगवान आत्मा ज्ञान अने आनंदनी मूर्ति छे. तेमां रागादि भावो अशुभ के
शुभ थाय ते आस्रव छे, ते तेनुं मूळ स्वरूप नथी; ते पर तरफना झुकावथी थयेल विकृत
भावो छे. तेने अने ज्ञानने एकपणुं नथी पण जुदाई छे. ज्ञान तो सहज शांत
आनंदस्वरूप छे, ने रागादि भावो आकुळतारूप छे, दुःखरूप छे. आवी