: ८ : आत्मधर्म : जेठ : २४९प
विदेहनां संभारणां
त्यारबाद वैशाखमासना उत्सव दरमियान समवसरणमां भक्ति वखते
सीमंधरनाथ अने कुंदकुंदाचार्यदेव प्रत्ये परम उल्लास–भक्ति–बहुमान आवतां गुरुदेवे
समवसरणमां बेठा बेठा पुस्तकमां लख्युं के –‘भरतथी महाविदेहनी मूळदेहे जात्रा करनार
श्री कुंदकुंदआचार्यनो जय हो, विजय हो, ’ तीर्थयात्राना केवा भावो, ने विदेहनां केवां
स्मरणो एमना अंतरमां उल्लसे छे ते आ हस्ताक्षर द्वारा देखाई आवे छे.
नवीन मेघवषार्
सं. २०१६ ना जेठ वद त्रीजे गुरुदेवनी डाबी आंखनो मोतियो सफळ रीते
उतारवामां आव्यो हतो. अने एक अठवाडिये पाटो छूटतां गुरुदेव पहेलवहेला ज्यारे
सभामां पाट उपर आवीने बिराज्या ते वखतना आनंददायी वातावरणनी शी वात!
अने पछी श्रावण मासमां गुरुदेवे प्रवचन करीने श्रुतनी मेघवर्षा फरी शरू करी त्यारे
तो श्रुततरस्यां जिज्ञासु जीवोनां हैयां ए नवीन अमृतवर्षा झीलीने आनंदविभोर
बनीने खीली ऊठ्या हता. पू. बेनश्रीबेने नवीन भक्ति करावी हती. आखा मंडळमां
आनंदोल्लासनुं वातावरण हतुं.
अध्यात्मनी धून ने मुनिदर्शननी ऊर्मि
सं. २०१६ मां श्रावण सुद पांचमे एकवार गुरुदेव बहार फरवा गयेल, ने त्यां
खुल्ला मेदानमां बेठाबेठा एकांतमां एकला धून जमावी. (पासे एक भक्त–आ
लखनार पोते ए धून सांभळतो हतो एनी गुरुदेवने खबर न हती, ए तो पोतानी
धूनमां मस्त हता.) मुखमांथी शब्दो नीकळता हता.
ज्यां चेतन त्यां सुर्वगुण केवळी बोले एम
प्रगट अनुभव आतमा निर्मळ करो सप्रेम..... रे
चैतन्यप्रभु! प्रभुता तमारी चैतन्यधाममां....
जिनवरप्रभु! पधार्या समोसरणधाममां......
वहाला प्रभुजी! बिराजे विदेहधाममां.....
–ए रटणमां ने रटणमां गुरुदेवने मुनिदर्शननी एवी ऊर्मि स्फूरी के अरे,
अत्यारे अहीं कोईक मुनिराजना दर्शन थाय तो केवुं सारुं! कोईक चारणऋद्धिधारक