Atmadharma magazine - Ank 308
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९प आत्मधर्म : १ :
वार्षिक लवाजम वीर सं. २४९प
* * * * *
चार रूपिया जेठ
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* वर्ष २६ : अंक ८ * * * * * *
गगनमंडळमां
ज्ञायकनुं घोलन
मक्षीजी तीर्थमां पार्श्वनाथ प्रभुनी प्रतिष्ठाना
मंगल उत्सव प्रसंगे पू. गुरुदेव विमान द्वारा मुंबईथी
ईन्दोर पधारी रह्या हता. साथे ४० जेटला मुमुक्षु यात्रिको
हता, ने पू. बेनश्रीबेन हर्षथी भक्ति करावता हता. आ
विमानयात्रानी मंगल यादीमां विमानमां बेठाबेठा
गुरुदेवे मंगल हस्ताक्षर लखी आप्या. हस्ताक्षर माटे
विनति करतां प्रथम तो एक हाथमां नोटबुक ने बीजा
हाथमां पेन्सील राखीने क्षणभर गुरुदेव ज्ञायकना
घोलनमां थंभी गया.....ए वखते वहाला विदेहीनाथ
अने कुंदकुंद–प्रभुनी विदेहयात्रा एमने याद आवता
हता... थोडीवारे आंख उघाडी, ने आ प्रमाणे हस्ताक्षर
लखी आप्या–“शुद्ध ज्ञायकना अर्तंमुख घोलनथी
आत्माने आनंद थाय छे–जे वचनातीत छे.”
जमीनथी बार हजार फूट ऊंचे निरालंबी
आकाशमां गगनविहार प्रसंगे हृदयमंथनमांथी गुरुदेवे
आपेली आ अमृतप्रसादी आपणने पण आत्मिक
भावना जगाडीने आनंद पमाडे छे.