Atmadharma magazine - Ank 308
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: २ : आत्मधर्म : जेठ : २४९प
सम्यक्त्वनी भूमिकामां
आत्मानो निर्णय
वैशाख वद ९ ना रोज पू. गुरुदेव शांतधाम
सोनगढमां पधार्या.....ने समयसार गा. ७४ थी प्रवचनो
शरू थया. गुरुदेव कहे छे के भाई! लक्ष्मी चांदलो करवा
आवे तेम आ तारा आत्मानो निर्णय करीने अनुभवना
मंगल टाणां आव्या छे; केवळज्ञानरूपी लक्ष्मी तने
चांदलो करवा आवी छे. तो आ अवसर तुं चुकीश मा.
आचार्यदेव कहे छे के आत्माने ज्ञान थवानो ने दुःख मटवानो एक ज काळ
छे. धर्म थवाना काळे ज आत्मा रागादि दुःखभावोथी छूटे छे, ने परभावोथी
छूटवाना काळे ज आत्मा ज्ञानरूप–आनंदरूप थाय छे. –आ रीते भेदज्ञान थतां ते
बंने एक साथे ज थई जाय छे. जीवना स्वभाव तरफ वळेलो जे ज्ञानभाव, तेमां
रागादि समस्त परभावोनो अभाव छे. ज्ञानस्वरूप आत्मा छे ते शुभाशुभ
विकल्पोनो स्वामी नथी. आत्मानो स्वभाव शुद्ध ज्ञानपणे परिणमवानो छे,
रागपणे परिणमवानो एनो स्वभाव नथी; एटले राग ते ज्ञाननुं साधन थाय
नहि. धर्म करवा माटे पहेलां ज आवो निर्णय करवो के शुद्ध ज्ञानरूपे परिणमवाना
स्वभाववाळो शुद्ध आत्मा हुं छुं; वच्चे विकल्पो आवे ते हुं नथी, ते विकल्प वडे हुं
स्वसंवेदन–प्रत्यक्ष थतो नथी, पण मारा शुद्ध ज्ञानस्वभाववडे ज हुं स्वसंवेदन–
प्रत्यक्ष थनारो छुं. –आवा निर्णयपूर्वक भेदज्ञान करवुं ते धर्मनी रीत छे. आ
निर्णयमां जेनी भूल होय तेने धर्म थाय नहीं.
भाई! तुं चैतन्य जात छो, ते जात रागनी नथी. रागथी तारी जुदी जात
छे. रागादि भावो तो तारी चैतन्य जातथी विरुद्ध छे; तेनामां स्व–परने जाणवानी
ताकात नथी, ने तारामां तो स्व–परने जाणवानी ताकात छे. –आवो निर्णय
करनार ज्ञानी रागादिना स्वामीपणे जराय परिणमतो नथी, माटे तेने रागनी
ममता नथी, तेथी ते निर्मम