Atmadharma magazine - Ank 308
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: ३४ : आत्मधर्म : जेठ : २४९प
उपर छे.) ए वखते प्रवचनमां अष्टप्राभृतमांथी मुनिदशाना अपार महिमानुं वर्णन
चालतुं हतुं, ने तेमां वळी स्वप्नद्वारा मुनिराजे दर्शन दीधां, –पछी तो पूछवुं ज शुं!
प्रवचनमां मुनिमहिमानो जे धोध वह्यो तेमांथी थोडांक टीपां नमूनारूपे जोतां तेनो
ख्याल आवशे; गुरुदेव कहेता–
* अहा, मुनिराज ए तो अरिहंतना पुत्र छे; अरिहंतना युवराज छे.
* मुनिने तो जिनतुल्य समजीने तेनुं परम बहुमान अने आदर करवा योग्य छे.
* मुनिदशा एटले छठ्ठा–सातमा गुणस्थाननी वीतरागी दशा.
* मुनि तो सहज स्वरूपनी निर्विकल्प शांतिमां झूलतां झूलतां सिद्धपदने साधी
रह्या छे.
* चैतन्यनिधान खोलवा नीकळेलो साधु जगतना निधानमां लोभातो नथी.
–आम हजारो प्रकारे मुनिदशानो साचो महिमा गुरुदेवना मुखे सांभळीने तीव्र
भक्तिपूर्वक एवा मुनिराजना दर्शननी तालावेली जागती हती. गुरुदेव पोते घणीयेवार
मुनिदर्शननी झंखना व्यक्त करे छे. –पण अंते कुंदकुंदादि मुनिभगवंतोनी स्मृतिथी ज
संतोष मानवो पडे छे; ने तेमनी वाणीने ज मुनिसमान समजीने परम आदरथी
एमना अंतरना भावोनुं वधु ने वधु ऊंडु मनन करवामां उपयोग लगावे छे.
२०२१ ना माह मासमां गुरुदेवे मध्यप्रदेशनो २प दिवसनो प्रवास कर्यो, तेमां
भोपाल, ईन्दोर, उज्जैन, मक्षी–पार्श्वनाथ अने मल्हारगढ वगेरे स्थाने थईने फागण
सुद एकमे सोनगढ पधार्या. आ प्रसंगे भोपाल अने उज्जैनमां जिनबिंबनी
वेदीप्रतिष्ठा थई. मल्हारगढमां पण गुरुदेव पधारतां धार्मिकमेळा जेवो भव्य उत्सव
थयो. –जंगलमां मंगल थयुं.
जयपुरना पंडितश्री टोडरमल्लजी रचित मोक्षमार्गप्रकाशक गुरुदेवनुं एक अति
प्रिय शास्त्र छे, अनेकवार तेना उपर प्रवचनो थयां छे; अने निश्चय–व्यवहारनां
रहस्यो संबंधी पं. टोडरमल्लजीए जे स्पष्टीकरण कर्युं छे तेने माटे गुरुदेव कहे छे के
जैनशास्त्रोना अर्थो उकेलवानी ए चावी छे. घणा प्रकारे पंडितजीनो महिमा गुरुदेवे
प्रसिद्ध कर्यो ने तेनो खुब प्रचार थयो; तेने परिणामे जयपुरमां लाखो रूा. ना खर्चे
विशाळ ‘पं. टोडरमल्लजी स्मारकभवन’ बंधाववानुं शेठश्री पूरणचंदजी गोदिकाए