: ४२ : आत्मधर्म : जेठ : २४९प
आ जन्मोत्सव प्रसंगे गुरुदेवनी पासे अवनवी वातो सांभळवा मळी तेमांथी
थोडाक प्रसंगोनो अहीं उल्लेख करीशुं–
* गुरुदेवे कह्युं के–श्रुतज्ञानीना हृदयमां सर्वज्ञ–तीर्थंकर बिराजे छे ए वात घणां
वर्षो पहेलां पहेलीवार सांभळी त्यारे मने खूब गमी गई; वाह! ज्ञानीना हृदयमांथी
तीर्थंकरभगवान बोले छे! जेना हृदयमां सर्वज्ञ बिराजे छे एने अनंत भव होता ज
नथी. एटले सर्वज्ञे पण एना अनंत भव दीठा ज नथी. सर्वज्ञनो निर्णय जे ज्ञाने कर्यो
ते ज्ञानमां भव छे ज नहि. सर्वज्ञना निर्णय वगर तेमनी वाणीनो (शास्त्रनो) निर्णय
थई शके नहि. सर्वज्ञनो एटले के ज्ञानस्वभावनो निर्णय ए जैनशासननी मूळवस्तु छे,
ते ज धर्मनुं मूळ छे.
* नाना बाळको पण गुरुदेव साथे अवारनवार अवनवी वात करता होय छे.
एक बाळके पूछ्युं–गुरुदेव! तमे धोळा ने हुं काळो –एम केम? गुरुदेव कहे–भाई!
आत्मा कांई काळो के धोळो नथी. शरीर क््यां आत्मानुं छे? हुं जीव, ने तुं पण जीव.
बंने सरखा; बस! जीव तो शरीरथी जुदो रंग वगरनो, ज्ञानस्वरूप छे.
हुं काळो नथी, हुं तो आत्मा छुं, –एम जाणीने ते बाळक खुशी थयो.
* सं. १९८९ ना मागशर सुद दसमे चेला गामे गुरुदेवने एक स्वप्न आवेलुं;
गुरुदेव ते वखते स्थानकवासी संप्रदायमां हता. स्वप्नामां एक मोटी हूंडी मळी, पण ते
हूंडी साथे स्वप्नमां एम पण आव्युं के आ दुकाने (एटले के जे संप्रदायमां तमे छो ते
संप्रदायमां) वटावी शकाय तेम नथी, ते वटाववा बीजी दुकान शाहुकारनी एटले के
वीतरागमार्गी सन्तोनी शोधवी पडशे. अने, आ स्वप्न पछी थोडा वखतमां (सं.
१९९१ मां) गुरुदेवे हूंडी वटावीने तत्त्वनी मूळ रकम प्राप्त करी.
*गुरुदेव कहे छे के–
* स्वानुभूति ते धर्मात्मानुं खरुं जीवन छे.
* स्वानुभूति ते ज धर्मना प्राण अने धर्मनुं जीवन छे.
* स्वानुभूतिने ओळखे तो ज धर्मीनुं खरुं जीवन ओळखाय छे.
* तारुं जीवन खरुं तारुं जीवन.....जीवी जाण्युं तें आत्मजीवन.