: जेठ : २४९प आत्मधर्म : ४३ :
* एकवार (सं. २०२२ ना मागसर वद अमासे) गुरुदेवे सर्वज्ञना महिमा
संबंधी खूबखूब भावो खोल्या; सर्वज्ञपदनी धूनमां तेओ झूलतां हता, त्यारे सर्वज्ञना
अपार महिमानुं घोलन करतां करतां गुरुदेवने सीमंधरनाथनुं विदेहक्षेत्र सांभरी आव्युं,
ने तेमनुं हृदय परमभक्तिथी, कंईक विरहनी वेदनापूर्वक बोली ऊठ्युं,
हम परदेशी पंथी साधु जी....आ रे देशके नांही जी....
स्वरूप साधी स्वदेश जाशुं, रहेशुं सिद्धप्रभु साथ जी....
हम परदेशी पंथी साधु जी....
–पछी तो विदेहक्षेत्रनी केटलीये वातो याद करी; धर्मात्माओ साथेना केटलाय
प्रमोद याद कर्या. गुरुदेव कहे छे के अमे विदेहमां भगवान पासे हता त्यांथी अहीं
आव्या छीए. रामनुं सोणलुं भरतने मळ्युं तेम विदेहथी अमे भरतमां आवी गया
छीए. अमारा घरनी आ वात नथी, आ तो साक्षात् भगवान पासेथी आवेली वात
छे. जेनां महान भाग्य हशे ते आ समजशे.
*घणां वर्षो पहेलां गुरुदेवे एकवार स्वप्नमां दरियो देख्यो. तेमां अपार मोजां
ऊछळतां हतां, पण पोताने जे तरफ जवानी ईच्छा थाय ते तरफना दरियामां वच्चे
रस्तो बनी जाय. ए रीते ऊछळता दरिया वच्चे पण निर्विघ्नमार्ग प्राप्त थई गयो,
कुदरते मार्ग करी आप्यो. तेम आ पंचमकाळमां मिथ्यामार्गना ऊछळता दरिया वच्चे
पण गुरुदेवे यथार्थ मार्ग शोधी काढ्यो ने ते मार्गे गमन कर्युं. जीव तैयार थाय त्यां
जगतमां मार्ग हजार ज छे.
–आम धर्मना अवनवा मधुर संभारणांपूर्वक आनंदथी वेशाख सुद बीज ऊजवी.
आ अरसामां एक विशेष घटना ए बनी के पांच वर्षनी बालिका
(वजुभाईनी पौत्री) राजुलने जातिस्मरणज्ञान होवानी वात प्रसिद्धिमां आवी.
पूर्वभवे (एटले के पांच ज वर्ष पहेलां) ते जुनागढमां हती ने तेनुं नाम गीता हतुं. ते
वखतनां तेनां माता–पिता अत्यारे पण जुनागढमां हयात छे. राजुलबेननो परिचय
आपतां सभामां गुरुदेवे कह्युं के आ राजुलने तो जातिस्मरणमां आ ज क्षेत्र साथेनो
संबंध, एटले तेना पुरावा बहारमां पण बतावी शकाय; परंतु बेनने तो आत्माना
ज्ञान उपरांत विदेहक्षेत्रसहित चार भवनुं ज्ञान छे. ते बधुं अंदरना पुरावाथी सिद्ध थई
गयेलुं छे, पण अहींना जीवोने ते कई रीते बतावी शकाय?