: ४४ : आत्मधर्म : जेठ : २४९प
वैशाख सुद बीज पछी तरत पंदर दिवस माटे गुरुदेव राजकोट पधार्या, ने
वैशाख वद पांचमे पुन: सोनगढ पधार्या. सोनगढना शांत–अध्यात्म वातावरणमां
वनजगलमां एकवार फरीने गुरुदेवने मुनिदर्शनना कोड जाग्या के अहा, कोई दिगंबर
संत–मुनि अत्यारे अचानक आकाशमांथी ऊतरीने दर्शन आपे तो केवुं सारुं! मुनिना
वीतरागी देदार नजरे देखीए, एमना मुखथी छूटती अध्यात्मनी धारा सांभळीए, ने
एमना चरणने भक्तिथी सेवीए. अत्यारे विदेहमां तो घणाय मुनिवरो छे, तेमांथी
कोई एकाद मुनिराज आकाशमार्गे पधारीने दर्शन आपो. ते धन्य घडी ने धन्य भाग्य!
एकवार (वीसेक वरस पहेलां) बपोरना समये गुरुदेव बहार जंगलमां गयेला
त्यारे कोई विचारनी धूनमां ने धूनमां लांबो वखत बेसी रह्या. टाईम थवा छतां
गुरुदेवने पाछा आवेला न देखीने अहीं स्वाध्यायमंदिरमां तो केटलाय माणसोमां
चिन्ता थई पडी ने चारेकोर शोधखोळ थई पडी. अंते एकाद कलाकनी चिन्ता पछी,
तेओ तो पोतानी मस्तीमां मस्तपणे चाल्या आवता हता! गुरुदेव पगपाळा के डोळी
मारफत विहार करता त्यारे कोईवार आवा विचित्र प्रसंगो बनता.
सं. २०२२ ना श्रावण सुद सातमनो दिवस भारतभरमां तेमज सोनगढमां
‘सम्मेदशिखर–दिन’ तरीके उजवायो हतो. आ अरसामां, सम्मेदशिखरसंबंधमां दिगंबर
जैनसमाजना संपूर्ण हक्कोनी जाळवणी थाय ते प्रकारना करार बिहार–सरकार साथे
थई गया हता. श्रावणमासना शिक्षणवर्ग दरमियान जयपुरथी दोढसो जेटला मुमुक्षुओ
गुरुदेवने जयपुर पधारवानी विनति करवा आव्या ने सोनगढनुं अध्यात्मवातावरण
देखीने बहु ज प्रसन्न थया. मध्यभारतना प्रधानश्री मिश्रिलालजी जैन गंगवाल पण
साथे ज हता. जयपुरमां फागणमासमां टोडरमल–स्मारक भवननुं उद्घाटन तथा तेना
चैत्यालयमां सीमंधरनाथनी वेदीप्रतिष्ठा थवानी होवाथी गुरुदेवे जयपुर जवानुं
स्वीकार्युं. गुरुदेवना महान प्रभावनायोगने लीधे उपराउपरी धर्मना मंगल प्रसंगो
निमित्ते विहार थया ज करे छे.
गुरुदेवने कोईवार वैराग्यरसनी अद्भुत खुमारी जागी होय ने रात्रिचर्चामां ते
व्यक्त करता होय, –त्यारे आखी सभा वैराग्यना रंगथी रंगाई जाय छे. नानकडा
राजकुमार कहेता होय के हे माता! आ राजपटमां क््यांय अमने सुख लागतुं नथी,
अमारुं सुख अमारा अंतरमां छे. तेने साधवा हवे अमे वनमां जईशुं ने मुनि थईशुं.
हे माता! तुं रजा आप. तुं अमारी छेल्ली माता छो....हवे बीजी माताना पेटे