: जेठ : २४९प आत्मधर्म : ४५ :
अवतार नहि करीए, बीजी माताने नहि रोवडावीए....’ एम कहीने कुमारो दीक्षा लेता
होय ने नानकडा हाथमां पींछी–कमंडळ सहित मुनिपणे विचरता होय–ए द्रश्यो केवा
हशे! आवा प्रसंगोनुं तेम ज सीताजीना वनवास वगेरेनुं वैराग्यरसभीनुं वर्णन
सांभळतां मुमुक्षुने आ संसारनो रस तूटी जाय छे ने तीव्रमां तीव्र वैराग्यभावो पोषाय
छे. –अहा, जाणे आजे ज ए संयमना वीतरागमार्गे चाल्या जईए.
घणीवार राते चिन्तन करतां करतां जागेली कोई मीठी चैतन्यऊर्मि सवारमां
गुरुदेव भावभीना उद्गार वडे व्यक्त करे छे. एकवार गुरुदेवे कह्युं–प्रभु! तुं पोते
अनंत शक्तिनुं धाम छो, पछी बीजा अंतर्जल्प के बहिर्जल्प करवानी वृत्तिनुं शुं काम
छे? बहार जती वृत्तिने छोडीने, एक अनंत शांतिमय धाम प्रभु आत्मामां ज तुं
लयलीन था....एनी ज प्रीति करीने एमां ज रम.’
साथे साथे एक भगवाननी वात पण सांभळो: भगवान तो खरा, पण अद्भुत
ने आश्चर्यकारी! स्फटिक जेवा ऊजळा...पण ए शेमांथी बनेला खबर छे? –मीठी साकरना
अखंड गांगडामांथी कोतरेला ए भगवान खड्गासन हता. साकरना भगवान एटले
जाणे मीठा अमृतरसथी भरेला, अतीन्द्रिय आनंदथी भरेला; ने कामगीरी तो एवी
आश्चर्यकारी के जाणे शाश्वती रत्ननी मूर्ति होय.....ने बोलती होय! आवा अद्भुत ए
भगवानने सं. २०२३ नी शरदपूर्णिमानी राते गुरुदेवे स्वप्नमां देख्या. अहो, शरदपूनमे
साकरना प्रभुदर्शननो ए मीठो स्वाद....ए मधुर आह्लाद! ए जिनप्रतिमाना आनंदकारी
दर्शननुं वर्णन करतां उल्लासपूर्वक गुरुदेव कहे छे के ए प्रतिमानी आश्चर्यकारी
अद्भुततानुं वर्णन हुं वचनथी बराबर कही शकतो नथी. जिनगुणचिन्तनमां दिनरात
मग्न रहेनारा गुरुदेव स्वप्नमांय अवारनवार जिनदेवने देखे छे. ए अमृतस्वादमय
साकरना जिनप्रतिमानुं दर्शन कोई मीठा–मधुर प्रभावशाळी फळनी आगाही सूचवे छे. हे
गुरुदेव! अमने पण जिनमार्गना ए अमृतनो मधुरस्वाद चखाडो.
–अने ए स्वप्ननुं मधुर फळ चाखवा माटे ज जाणे सिद्धभगवंतोना देशमां
जवानुं ने सम्मेदशिखरसिद्धिधामनी यात्रा करवानुं नक्की कर्यु. वाह! गुरुदेव साथे
संतोना धाममां जाशुं ने त्यां गुरुदेव आपणने सिद्धभगवान देखाडशे.
परम सत्यतत्त्वनी गंभीरता अने भारतनी अत्यारनी परिस्थिति जोईने गुरुदेव
कोई कोईवार कहे छे के–बापु, आ कोई साधारण वात नथी, आ तो सर्वज्ञ परमात्मा