: ५६ : आत्मधर्म : जेठ : २४९प
भगवान! तुं जडथी ने रागादिथी जुदो ज्ञानानंदस्वरूप छो. देहथी भिन्न
चैतन्यमूर्ति आत्मा पोतानुं स्वरूप भूलीने, रागने ज अनुभवतो थको अनादिथी दुःखी
छे. जिज्ञासु शिष्य पूछे छे के प्रभो! आ आत्मा दुःखथी केम छूटे? शुं करवाथी आत्माने
आनंदनुं वेदन थाय, ने दुःख मटे? एम अंतरमां आत्मानो जिज्ञासु थईने जे शिष्य
पूछे छे तेने आचार्यदेव दुःखथी छूटवानी रीत बतावे छे के हे भव्य! प्रथम तो ज्ञानने
अंतरमां वाळीने तुं आत्मानो निर्णय कर. केवो निर्णय करवो? –तो कहे छे के–
छुं एक शुद्ध ममत्वहीन हुं ज्ञानदर्शनपूर्ण छुं,
एमां रही स्थित लीन एमां शीघ्र आ सौ क्षय करुं.
निर्विकल्प स्वसंवेदनप्रत्यक्ष एवो विज्ञानघन आत्मा हुं छुं, विकल्प वडे प्रत्यक्ष
थाउं एवो हुं नथी, पण स्वसंवेदनज्ञानवडे प्रत्यक्ष थाउं एवो हुं छुं’ –एम पोताना
आत्मानो निर्णय करवो आवो निर्णय करनारने रागना अवलंबननी बुद्धि न रहे,
विकल्पना कर्तृत्वनी बुद्धि न रहे. विकल्प अने ज्ञाननी अत्यंत भिन्नता नक्की करीने ते
पोताना ज्ञानस्वभाव तरफ वळे छे, त्यां आस्रवोथी एटले के दुःखथी ते मुक्त थाय छे,
ने आत्माने स्वसंवेदनप्रत्यक्ष करीने आनंदने अनुभवे छे.
जुओ, आ आत्महितनी उत्तम वात छे, ने स्त्री–पुरुष दरेक जीवने समजाय तेवी
छे, अनुभवमां आवे तेवी छे. स्त्री ने पुरुष ते तो उपरना खोळिया छे, अंदर जीव
चैतन्यमूर्ति छे. मक्षीजीमां आ पहेली ज वार प्रवचन थाय छे; भगवाने कहेलो मोक्षनो
मार्ग आजे आ मक्षीजीमां प्रसिद्ध थाय छे. आवा आत्मानुं भान करीने अनंता जीवो
मोक्ष पाम्या छे.
बपोरे विद्वानो साथे अनेकविध चर्चा प्रसंगे गुरुदेवे कह्युं के लाखो करोडो
रूपियानी किंमतना हीरा–माणेक वगेरे झवेरात वडे जेनी किंमत थई शके नहीं एवो
चैतन्य–चिन्तामणिरत्न आत्मा छे; शुभविकल्प वडे पण एनी किंमत थई शके नहि.
एनी किंमत, एटले के एनो अनुभव रागवडे थई शके नहि पण स्वसंवेदन–प्रत्यक्षवडे
ज तेनी किंमत ने अनुभव थई शके छे. एवा अनुभव वडे ज आत्मानुं दुःख मटे छे. ने
आनंद प्रगटे छे. आवो अनुभव ते मोक्षनो उपाय छे, तेना वडे ज बंधनथी छूटाय छे.
आवा अमूल्य चैतन्यरत्नने ओळखीने अनुभवमां लेवा जेवुं छे.