: जेठ : २४९प आत्मधर्म : ५७ :
बपोरना प्रवचनमां ७३मी गाथानो विस्तार करतां कह्युं के–आत्मा चेतन
स्वभावे प्रत्यक्ष छे. राग के परोक्षपणुं एनो स्वभाव नथी. रागमां ने परोक्षमां जे
अटके तेने ‘आत्मा’ कहेता नथी. आत्मा पोते अंदरमां आवा स्वभावथी भरेलो छे,
तेनो परिचय करवा जेवो छे. अनादिथी जीवने रागनो ने कामभोगनो परिचय छे, पण
तेनाथी भिन्न पोताना शुद्ध–एक स्वभावनो परिचय कदी कर्यो नथी; ने अंतरमां तेनो
प्रेम करीने सत्समागमे तेनी वात पण कदी सांभळी नथी. भाई, अत्यारे आ वात
समजवानो अवसर आव्यो छे, अत्यारे समजे, के काले समजे, के लाखो करोडो वर्षे
समजे के अनंतकाळे समजे, –पण आत्मानो आ सत्स्वभाव के जे सर्वज्ञभगवाने
कहेलो छे ते समज्या वगर बीजा कोई उपाये कल्याण थाय तेम नथी. अहो,
सर्वज्ञभगवाननी आ शिखामण छे, आ जैनशासन छे. आत्माना शुद्धस्वभावने
देखवो–जाणवो–अनुभववो ते जैनशासन छे–ए वात समयसारनी १प मी गाथामां
आचार्यभगवाने बतावी छे. आत्मस्वभावनी सन्मुखना जे ज्ञानपरिणाम छे तेमां
निश्चयमोक्षमार्ग समाय छे, राग तेमां समातो नथी, ने रागमां मोक्षमार्ग समातो नथी.
भगवान! तुं जडथी जुदो ज्ञानस्वरूप आत्मा छो. शरीरनो–मननो वाणीनो तुं
कर्ता नथी, तेना कार्यनुं कारण तुं नथी. अने ते तरफनो जे राग थाय ते राग साथे पण
तारा चैतन्यस्वभावने कर्ताकर्मपणुं नथी. रागवगरना आवा स्वानुभवप्रत्यक्ष आत्मानो
तुं पहेलां निर्णय कर. निर्णय करनारने पहेलां विचारदशामां विकल्प होय, पण ते विकल्प
कांई अनुभवनुं साधन नथी. विकल्पथी भिन्न ज्ञानने अंतमुर्ख करतां स्वानुभव–प्रत्यक्ष
सहित आत्मानो साचो निर्णय थाय छे. शुभराग मारुं साधन नहि–एम रागथी
भिन्नतानो निर्णय करवो. पण ‘राग मारुं साधन’ एम पहेलेथी निर्णयमां ज जेनी भूल
छे तेने रागथी भिन्न आत्मानो अनुभव थई शकशे नहि. चिदानंद धु्रवस्वभावमां निर्मळ
पर्यायना छ कारकना भेद पण नथी त्यां रागना के जडना कारको तेमां केवा? स्वानुभव–
प्रत्यक्षमां एक अखंड आत्मस्वभावनो अनुभव छे, तेमां भेद नथी, विकल्प नथी, राग
नथी. आवा स्वभावनो निर्णय करवो ते ज तेना अनुभवनुं साधन छे. आ निर्णय ते
अपूर्व छे. आवा आत्माने अनुभवमां लेवो ते धर्म छे.
मक्षी गामडुं छे, एनुं वातावरण जंगल जेवुं छे; झाडपान ने खेतरो वच्चे
जिनमंदिरो मंगलरूप शोभी रह्या छे. दूरदूरथी बे जिनालयोना उज्वल शिखर एवा
देखाई रह्या छे के जाणे बे भाईओ नजीकनी एकबीजा साथे वात करी रह्या होय.–जाणे