: जेठ : २४९प आत्मधर्म : ५९ :
ज छे, ने राग ते राग छे; एम बंनेनी पृथक्ता छे. माटे धर्मी जीव रागनो स्वामी नथी.
ते तो स्वसंवेदनप्रत्यक्ष एवा पोताना स्वभावनो ज स्वामी छे.
ता. ८–५–६९ वैशाख वद ७ ना रोज सवारे दस वागे जिनमंदिरमां अत्यंत
आनंदोल्लासपूर्वक प्रतिष्ठा थई. गुरुदेवना सुहस्ते स्वस्तिक करावीने मंदिर उपर सुवर्ण
कळश तथा धर्मध्वज शोभी उठ्या. आम मक्षीजी तीर्थमां भव्य प्रतिष्ठा उत्सव उजवायो.
बे दिवसना प्रवचनो द्वारा मिथ्यात्वनो नाश करीने सम्यक्त्वनी उत्पत्तिनुं सुंदर
विवेचन सांभळीने मध्यप्रदेशना केटलाय जिज्ञासुओ प्रभावित थया. उछामणीमां तेमज
धु्रव– फंडमां रूा. सवालाख उपरांत थया. मंगल उत्सव पूर्ण थतां पारसप्रभुना
जयकारपूर्वक गुरुदेव मक्षीजीथी ईंदोर पधार्या.–जय पारसनाथ
श्रुत पंचमी
णमो लोए सव्व अरिहन्ताणं एवा मंगलपूर्वक
श्रुतपंचमीना मंगल प्रवचनना प्रारंभमां गीरनारवासी
धरसेनाचार्यदेवने याद करीने गुरुदेवे श्रुतनो ईतिहास कह्यो.
श्रुतनो प्रवाह टकावनारा ए धरसेन अने पुष्पदंत–भूतबली
मुनिवरो वीतराग हता. तेमणे रचेला षट्खंडागमना
मंगलमां णम्मो लोए सव्व अरिहंताणं एम कहीने
सर्वलोकमां वर्तता त्रिकाळवर्ती सर्वे अरिहंतोने नमस्कार कर्या
छे. ए ज रीते लोकमां रहेला त्रिकाळवर्ती सर्व सिद्धोने तेम ज
आचार्य वगेरेने नमस्कार कर्या छे. अहो! ज्ञाननी केटली
विशाळता! अनंत अरिहंत–सिद्धोने लक्षमां लेनारुं ज्ञान
केटली ताकातवाळुं छे! आवा मंगलपूर्वक षट्खंडागम–
जिनवाणीनी रचना थई ने अंकलेश्वरमां बे हजार वर्ष पहेलां
तेनो महोत्सव थयो, ते दिवस आजे (जेठ सुद पांचमे) छे.
ए श्रुत एम बतावे छे के आत्मा चिदानंद स्वरूप छे,
तेमां पर भावोनुं कर्ताकर्मपणुं नथी. आवो आत्मा जाणवो ते
श्रुतनुं रहस्य छे.