: ६४ : आत्मधर्म : जेठ : २४९प
चक्रवर्तीकी संपदा इन्द्रलोकके भोग।
काकवीट सम गिनत है वीतरागके लोग।।
ईंदोरना मंदिरोमां बिराजमान जिनभगवंतोना फरी फरी दर्शन करतां आनंद
थाय छे. भगवंतोना दर्शन करीने ९ वागतां विमानघर पर पहोंच्या. त्यां लगभग
अडधो कलाक ईंदोरना सेंकडो मुमुक्षुओ वच्चे तत्त्वचर्चा चाली; गुरुदेवे अलिंगग्रहण
आत्मानुं स्वरूप समजावतां ‘उपयोग’ नुं अप्रतिहतपणुं बताव्युं, तेमज केटलीक
ऐतिहासिक वात पण करी. ते सांभळीने मुमुक्षुओए अत्यंत प्रसन्नता व्यक्त करी.
सवादश वागतां फरी गुरुदेव साथे गगनविहार करीने मुंबई पहोंच्या. आजे वैशाख
वद आठम एटले समयसारनी स्थापनानो उत्तम दिवस हतो. ‘समयसार’ ना पक्षी
ज्ञानगगनमां ऊडे छे’ ए वात गगनविहारमां याद आवती हती. मुंबईना मुमुक्षुओए
गुरुदेव प्रत्ये आनंदोल्लास ने भक्ति व्यक्त कर्या. बीजा दिवसे (वैशाख वद ९ नी
सवारे) विमानद्वारा मुंबईथी (प० मिनिटमां) भावनगर पहोंच्या; ने त्यांथी ९ वागे
गुरुदेव सोनगढ पधार्या. भक्तोए उमंगथी स्वागत कर्युं. गुरुदेवे भावथी
सीमंधरनाथना दर्शन करीने अर्घपूजन कर्युं. सुवर्णधाम नवपल्लवित बन्युं. समयसार
अने प्रवचनसार उपर प्रवचनो शरू थया.....अध्यात्मनी मेघवर्षा शरू थई ने बीजा ज
दिवसथी शिक्षणवर्गनो प्रारंभ थयो. गुरुदेवना श्रीमुखथी वरसती अध्यात्मनी वर्षा वडे
आत्मामां शीघ्र रत्नत्रयना अंकुरा फूटे ए ज भावना.
ईनाम
“अमे जशुं मोक्षमां, केम तने छोडशुं?
आवजे मोक्षमां तुंय अम साथमां.
भव्य निज पदने साधजे भावथी,
शिख आ संतनी शीघ्र तुं मानजे....”
उपरनुं लखाण बीजे क््यां छपायेलुं छे ते शोधी
काढनाराओ वच्चे दस रूा. नी किंमतना फोटा अगर
पुस्तको भेट मोकलाशो. (जुन ता. १प सुधीमां)