Atmadharma magazine - Ank 308
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९प आत्मधर्म : ६५ :
जीवनुं साचुं स्वरूप
मुंबई अने मक्षीजीमां मंगल प्रतिष्ठा महोत्सव पछी
पू. गुरुदेव सोनगढ–शांतिधाममां पधार्या अने वैशाख वद
१० थी बपोरना व्याख्यानमां प्रवचनसार गा. १७२ थी
वांचन शरू थयुं. तेमां गुरुदेवे कह्युं के–तारा स्वभावनी आ
वात भगवान तने संभळावे छे. आत्मा तो ईंद्रियातीत
चैतन्य हीरो छे; साचा जीवनुं आवुं स्वरूप भण एटले के
ओळख; एना वगर बीजा बधा भणतर नकामा छे.
शरीरादि तो पुद्गलमय अचेतन छे, ते जीवनुं स्वरूप नथी. तो जीवनुं स्वरूप शुं
छे? जीवनुं एवुं खास स्वलक्षण शुं छे के जेना वडे तेने अन्य समस्त द्रव्योथी भिन्न
अनुभवी शकाय? –आवी जेने जिज्ञासा जागी छे ते शिष्यने जीवनुं असाधारण स्वरूप
आचार्यदेव आ १७२ मी गाथामां ओळखावे छे.
देह पुद्गलमय छे; ते देहनां काम आत्मा करे ए मान्यतामां तो सर्वथा विरोध
छे. देहथी तो आत्मा सर्वथा भिन्न छे. तो हवे देहथी भिन्न एवुं कयुं साधन छे के जे
साधन वडे आत्माने साचा स्वरूपे ओळखी शकाय? ते अहीं बतावे छे.
अतीन्द्रिय ज्ञान वडे जाणवानुं काम करे तेने ज खरो आत्मा कहीए छीए.
ईन्द्रियो ते तो परद्रव्य छे, ते ईंद्रियो तरफ झूकेला भावने आत्मा कहेता नथी.
ईंद्रियोथी जुदो एवो चेतनस्वरूप आत्मा, ते ईंद्रियो वडे केम जाणे? स्वतत्त्व जे
ज्ञानना लक्षमां न आव्युं ने एकला पर तरफ जे झूक्युं तेने खरेखर ज्ञान कहेता
नथी. एकलो अतीन्द्रिय ज्ञानरस जेमां भर्यो छे तेना ज्ञानमां ईंद्रियोनुं के वाणी
वगेरेनुं अवलंबन नथी. ज्ञानरसमां अनंतगुणनो स्वाद भर्यो छे. ईंद्रियो ते आत्मा
नहि, ने ईंद्रियोना अवलंबनमां रोकाय ते पण खरेखर आत्मा नहीं. ज्ञान तो
आत्मानुं छे, ईंद्रियोनुं