वधतुं जाय छे ने परोक्षपणुं तूटतुं जाय छे, –रागनुं ने ईद्रियोनुं अवलंबन छूटतुं जाय
छे. आवो मोक्षमार्ग छे, ने आवी धर्मीनी दशा छे.
के आ पंचमकाळमां आवा मुनिओ पाक्या. वाह, ए संत–महंतनी अंर्तदशा!
पंचपरमेष्ठीमां जेनुं स्थान छे, जेनां दर्शनथी मोक्षनी प्रतीत थई जाय! एवा ए
कुंदकुंदाचार्य जेवा मुनिओ ज्यारे साक्षात् विचरता हशे–त्यारे तो जाणे के चालता
सिद्ध! तेमणे अंतरमां अनुभवेलो आत्मा आ शास्त्रोमां प्रसिद्ध कर्यो छे.
अलिंगग्रहण शब्दना २० अर्थो करीने आत्मानुं स्वरूप समजाव्युं छे. ए संतोना
चरणोमां नमस्कार हो.
पाम्या छे. देव–गुरु–धर्मनी उपासना वडे तेमनो आत्मा आत्महित पामे–ए ज
भावना.
वर्षोथी सोनगढ आवीने लाभ लेता. गत फागण मासमां अमदावादथी हिंमतनगर
जतां गुरुदेव तेमने त्यां दर्शन देवा पधार्या हता. देव–गुरु–धर्मनी उपासना वडे तेओ
आत्महित पामे–ए ज भावना.
अवारनवार सोनगढ पण आवता, अने छेल्ले रणासण–प्रतिष्ठा वखते पण आवेला.
धर्मसंस्कारमां आगळ वधीने तेओ आत्महित साधे ए ज भावना.