Atmadharma magazine - Ank 308
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म : जेठ : २४९प
अध्यात्मसंत श्री कानजीस्वामी
(जीवनपरिचय (गतांकथी चालु)
ले. ब्र. हरिलाल जैन
जैनधर्मनी प्रभावनाना अनेक प्रसंगोथी
भरपूर पू. श्री कहानगुरुना मंगलजीवननो विस्तृत
परिचय आत्मधर्ममां पहेली ज वार प्रसिद्ध थाय छे.
अनेक विशेषताओथी भरपूर गुरुदेवना
जीवनमांथी मुमुक्षुजीवोने आत्मसाधनानी अनेरी
प्रेरणाओ मळे छे. भूत–भविष्यनी मंगल संधिवाळुं
ए जीवन परम आस्तिकताने द्रढ करे छे ने
भक्तितरंगोने उल्लसित करे छे. आवा जीवननो
पहेलो हप्तो गतांकमां प्रगट थयेल ते वांचीने
घणाए प्रसन्नता व्यक्त करी छे. बीजो हप्तो अहीं
प्रगट थाय छे; तेमां पण अनेक अवनवा प्रसंगो
जाणीने आपने प्रसन्नता थशे. (संपादक)
सं. २०१प मां दक्षिण भारतना तीर्थोनी उल्लासभरी यात्रा करीने गुरुदेव
अध्यात्मधाम सोनगढनी शीतलछायामां पधार्या, अने गुरुदेवनी शीतलछायामां,
सोनगढना शांत अध्यात्मवातावरणमां मुमुक्षु भक्तजनो आनंदथी आत्मिकभावनामां
रत बन्या.....जात्रामांथी मळेली संतोना आदर्श–जीवननी प्रेरणा अंतरमां वागोळवा
मांड्या. गुरुदेवनुं अंतर पण अध्यात्मचिंतनमां विशेष परोवायुं. यात्राना मधुर
संभारणां गुरुदेव फरीफरीने याद करता ने तेमनुं हृदय तीर्थ प्रत्येनी भक्तिभावनाथी
द्रवी जतुं. दक्षिणयात्रानी खुशालीमां २४ तीर्थंकरपूजनविधान थयुं हतुं. (आ
दक्षिणतीर्थंयात्रानुं पुस्तक पण हवे प्रसिद्ध थशे.)
गुरुदेव साथे भारतना देशदेशनो प्रवास खेडीने सोनगढ आव्या पछी त्यांना
शांतअध्यात्मवातावरणमां मुमुक्षुने जे मीठाश वेदाय छे, जे चैतन्यनी नीकटताना
भणकार