Atmadharma magazine - Ank 308
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९प आत्मधर्म : ५ :
परिणामरूप धर्म जीवना स्वभावना अवलंबने ज थाय छे. परना अवलंबने
रागादिनी उत्पत्ति थशे ने तेनुं फळ पण बहारनो संयोग आवशे; ते संयोगना लक्षे तो
राग ने आकुळता ज थशे. निराकुळ सुख तो ज्ञानस्वभावना अवलंबने ज थशे. आम
ज्ञान अने रागनी अत्यंत भिन्नता नक्की करीने, ज्ञानस्वभावनुं अवलंबन लेवुं ते
मोक्षनुं बीज छे. माटे तमे आवो निर्णय करीने ज्ञानस्वभावनुं अवलंबन ल्यो.
आत्मा चैतन्यमूर्ति आनंदनुं झाड छे, तेनो पाक थईने तेमांथी आनंदनुं फळ
आवे छे. ने रागादि विकारभावो ते दुःखनुं झाड छे, तेनो पाक दुःखरूप फळ देनार छे. –
आम बंनेना स्वरूपनी अत्यंत भिन्नताने जीव ज्यारे ओळखे छे त्यारे ते रागनुं
अवलबंन छोडे छे ने विज्ञानघनस्वभावनुं अवलंबन ल्ये छे; आ रीते आत्माना
आनंदनो अनुभव थाय छे. साचा निर्णयनुं आ फळ छे.
धर्म कहो, के आत्मानी वीतरागपर्याय कहो; ते केम थाय? रागना अवलंबने
वीतरागपर्याय न थाय. रागथी पार चिदानंद स्वभाव हुं छुं–एवो निर्णय करीने तेनुं
अवलंबन करतां विज्ञानघनरूप वीतरागपर्याय प्रगटे छे. –ए धर्म छे ने ए ज मोक्षमार्ग छे.
मारुं अस्तित्व
* मारा आत्मामां अस्तित्वगुण छे,
तेथी आत्मानुं अस्तित्व कदी मटतुं नथी.
अस्तित्व मटतुं नथी एटले मरण थतुं नथी.
अस्तिपणे आत्मा सदाय छे....छे......ने छे.
* शरीर होय त्यारे पण आत्मा पोताना चैतन्यभावथी जीवतो छे.
शरीर न होय त्यारे पण आत्मा पोताना चैतन्यभावथी जीवतो छे.
शरीर कपाय के छूटुं पडे तेथी कांई आत्मा मरी जतो नथी.
* आत्मानुं अस्तित्व शरीरथी जुदुं छे.
आत्मा कदी मरतो नथी..........
चैतन्य जीवनथी सदाय मारुं अस्तित्व छे.
मारा अस्तित्वथी हुं सदाय जीवतो ज छुं.