: ४ : आत्मधर्म : जेठ : २४९प
वृत्ति ऊठे तेमां पण दुःख छे–एम ज्यां सुधी न समजे त्यां सुधी जीव दुःखरूप आस्रवोथी
पाछो फरे नहि, ने तेने साचुं भेदज्ञान थाय नहि. भेदज्ञान करनार जीव रागादि परभावोथी
पाछो वळे छे एटले के तेमां क््यांय तेने सुख भासतुं नथी. तेनाथी भिन्न शुद्ध ज्ञानने एकने
ज ते पोताना स्वभावपणे अनुभवे छे.–आवो अनुभव ते मोक्षमार्ग छे.
भगवान सर्वज्ञदेवे मोक्षनी साधना माटे पहेलेथी ज एम नक्की करवानुं
फरमाव्युं छे के ज्ञान अने रागादि भावोने अत्यंत जुदाई छे. सम्यग्दर्शननी भूमिकामां
आवो द्रढ निर्णय होय छे. विकल्पना मेला तरंग जेटलो आत्मा नथी, आत्मा तो
आखो आनंदनो सागर छे. अहो! आवा आनंदथी भरेला चैतन्य दरियामां वच्चे
रागादिनुं अवलंबन केवुं? रागने तो जीव नथी कहेता; जीव तो चेतन स्वभाव छे. –
आम तारा स्वभावने रागथी भिन्न जाणीने हे जीव! तुं रागथी पाछो वळ. आत्मानो
निर्णय करवा माटे आ उत्तम अवसर तने मळ्यो छे. केवळज्ञानरूपी लक्ष्मी चांदलो करवा
आवी छे, त्यारे रागमां धर्म मानीने रोकाईश नहीं. आत्माना साचा स्वरूपनो निर्णय
कर त्यां तने केवळज्ञाननी खातरी थई जशे. –आवो वीतराग मार्ग छे.
समवसरणमां बिराजमान भगवानने तो वीतरागता छे, ने भगवाननी
वाणीमां पण वीतरागतानो ज, एटले के ज्ञानस्वभावना अवलंबननो ज उपदेश
आप्यो छे. वाणीना अवलंबने तो राग थाय छे, तेनो उपदेश भगवाने नथी आप्यो.
भगवाने पोते परनुं अवलंबन छोडीने, स्वभावना अवलंबने सर्वज्ञता प्रगट करी छे,
ने वाणीमां पण समस्त परनुं अवलंबन छोडीने स्वभावनुं एकनुं ज अवलंबन
लेवानुं भगवाने उपदेश्युं छे. भगवाने राग अने परालंबन छोड्युं तो तेओ रागनो के
परालंबननो उपदेश केम आपे? परना अवलंबनथी लाभ थवानुं बतावे ते उपदेश
वीतरागभगवाननो नहि. स्वाश्रये वीतरागतानो उपदेश ते ज वीतरागभगवाननो
उपदेश छे. –आवा स्वाश्रयनो निर्णय करे तेने ज भगवाननी वाणीनो साचो निर्णय
थाय छे. पराश्रयथी (शुभरागथी पण) लाभ माननार जीव भगवाननी वाणीने
ओळखतो नथी. अहो, वीतरागनो मार्ग अनेरो छे.
गणधरो, ईन्द्रो अने चक्रवर्ती वगेरेनी सभामां समवसरण वच्चे भगवान
सर्वज्ञपरमात्मानो जगतने माटे आ अध्यात्मसन्देश छे के हे जीवो, तमारो ज्ञानस्वभाव छे,
तेनाथी बहार वाणीना श्रवण उपर लक्ष जाय के कोई पण बहारना पदार्थनुं अवलंबन
लेवा तरफ लक्ष जाय तेमां राग अने आकुळता छे, ते सुखनुं कारण नथी. जीवना निर्मळ–