Atmadharma magazine - Ank 308a
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: प्र. अषाड : २४९प आत्मधर्म : ३५ :
तो चक्रवर्ती पद पण सारूं नथी. माटे बंधुओ! धर्मना संस्कार ए ज आपणी साची
अने महान मूडी छे, माटे तेनो अभ्यास जरूर करजो.
(आ लेखमां नेहरुजीनां अवतरणो “फूलछाब्यमांथी साभार लीधा छे.)
छेल्ला ५णचार मासथी पू. गुरुदेव साथेना प्रवासने कारणे तेमज बीजा
कामकाजने कारणे बालविभाग आपी शकायो न हतो. हवे व्यवस्थित आपीशुं,
ते माटे तमारा लेखो–प्रश्नो वगेरे खुशीथी लखी मोकलावजो. (ब्र. हरिलाल
जैन, सोनगढ सौराष्ट्र ए सरनामे मोकलवुं.) गुरुदेव साथेना प्रवासमां
गामेगाम बालविभागना केटलाय सभ्यबंधुओने मळीने आनंद
थयो.....बाळकोमां धर्मनो केवो उत्साह ने थनगणाट भर्यो छे ते पण ठेरठर
जोवा मळ्‌युं; तेमने योग्य दोरवणी अने प्रोत्साहन आपवामां आवे तो केटलुं
सुंदर कार्य करी शके ते पण अनेक प्रसंगोमां जोवा मळ्‌युं. बाळकोमां खूब जागृती
आवी गई छे. खामी होय तो एक ज छे के बाळको माटेना सारा साहित्यनो
आपणा समाजमां लगभग अभाव छे.–एनी खूब जरूर छे. नानकडा बाल–
झाडवांने ऊछेरवा होय तो एने धार्मिक साहित्यरूपी पाणी पीवडावो.
जय जिनेन्द्र
सिद्धांतनुं सर्वस्व : रत्न५य
एतत्समयसर्वस्वं मुक्तेश्चेतन्निबन्धनम्।
हितमेतद्धि जीवानामेतदेवाग्रिमं पदम् ।। २२ ।।
आ रत्न५य ज सिद्धांतनुं सर्वस्व छे तथा ते ज मुक्तिनुं कारण
छे; जीवोनुं हित ते ज छे अने प्रधान पद ते ज छे.
ये याता यान्ति यास्यन्ति यमिन; पदमव्ययम्।
समाराध्यैव ते नूनं रत्नत्रयमखण्डितम् ।। २३ ।।
खरेखर आ रत्न५यने अखंडित–परिपूर्ण–आराधीने ज
संयमी मुनिओ आजसुधी पूर्वकाळमां मोक्ष गया छे, वर्तमानमां
जाय छे तथा भविष्यमां जशे.