Atmadharma magazine - Ank 308a
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: ३४ : आत्मधर्म : प्र. अषाड : २४९प
जय जिनेन्द्र
वडाप्रधान करतां आपणां बाळको वधु भाग्यशाळी छे
बंधुओ, आ वात वांचीने कदाच तमने आश्चर्य थशे. परंतु पंदर–पंदर वर्ष सुधी
भारत जेवा अध्यात्मप्रधान महान देशनुं वडाप्रधान पद भोगवनारा लाडीला नेता
जवाहरलाल नहेरुजीने जीवनभर अध्यात्मना जे संस्कार नहोता मळ्‌या, ते
अध्यात्मसंस्कार आपणा बाळकोने पारणामांथी ज मळे छे. बाळविभागनुं नानुं बच्चुं
पण जाणे छे के ‘हुं जीव छुं.....हुं आत्मा छुं....’ हुं छुं आत्मा......’ ए आत्मगीत हजारो
बाळको आजे घरे घरे गाय छे.
ज्यारे श्री जवाहरलाल नहेरु एक जग्याए लखे छे के–“आत्मा जेवी कोई
वस्तु छे के केम, अने मृत्यु पछी जीवन छे के केम–एनी मने खबर नथी....्य एटले,
आत्माना अस्तित्वनो पण निर्णय तेओ करी न शक्या. त्यारे धार्मिकसंस्कार धरावतुं
आपणुं नानुं बाळक पण बेधडक कहेशे के–आत्मा छे, ते नित्य छे, छे कर्ता निजकर्म; छे
भोकता, वळी मोक्ष छे, मोक्ष उपाय सुधर्म.’
बीजा एक ठेकाणे जवाहरलालजी लखे छे के“में संतो अने महात्माओ विषे
सांभळ्‌युं छे परंतु एमने मळवानुं सौभाग्य मने प्राप्त थयुं नथी अने तेमना अस्तित्व
अंगे मने शंका छे.्य –त्यारे आजे आपणने तो केवा मजाना संतो–धर्मात्माओ साक्षात्
मळ्‌या छे–ने आपणने केवो सरस आत्मा देखाडी रह्या छे!
तमे ज कहो जोईए–कोण भाग्यशाळी? जवाहरलाल नहेरु के आपणे?
बंधुओ, जीवननी साची मूडी तो आत्मिक संस्कार छे. नानपणथी ज आत्मामां
धर्मना संस्कार रेडवा जेवा छे. आपणा आत्मानी अने देशनी खरी उन्नति तेमां ज छे.
स्तुतिमां पण आवे छे के धर्म सहितनी गरीबी तो सारी छे, परंतु धर्म वगरनुं