जवाहरलाल नहेरुजीने जीवनभर अध्यात्मना जे संस्कार नहोता मळ्या, ते
अध्यात्मसंस्कार आपणा बाळकोने पारणामांथी ज मळे छे. बाळविभागनुं नानुं बच्चुं
पण जाणे छे के ‘हुं जीव छुं.....हुं आत्मा छुं....’ हुं छुं आत्मा......’ ए आत्मगीत हजारो
बाळको आजे घरे घरे गाय छे.
आत्माना अस्तित्वनो पण निर्णय तेओ करी न शक्या. त्यारे धार्मिकसंस्कार धरावतुं
आपणुं नानुं बाळक पण बेधडक कहेशे के–आत्मा छे, ते नित्य छे, छे कर्ता निजकर्म; छे
भोकता, वळी मोक्ष छे, मोक्ष उपाय सुधर्म.’
अंगे मने शंका छे.्य –त्यारे आजे आपणने तो केवा मजाना संतो–धर्मात्माओ साक्षात्
मळ्या छे–ने आपणने केवो सरस आत्मा देखाडी रह्या छे!
बंधुओ, जीवननी साची मूडी तो आत्मिक संस्कार छे. नानपणथी ज आत्मामां
स्तुतिमां पण आवे छे के धर्म सहितनी गरीबी तो सारी छे, परंतु धर्म वगरनुं