Atmadharma magazine - Ank 308a
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: प्र. अषाड : २४९प आत्मधर्म : ३३ :
बंधुओ, खास करीने विद्यार्थी बंधुओ! तमे जैनसिद्धांतनो निःशंकपणे अभ्यास
करजो. विदेहक्षे५ जेवा महान देशो–के जेने आपणा संतोए प्रत्यक्ष जोयेल छे–अने ज्यां
सीमंधरादि भगवंतो बिराजे छे–तेना अस्तित्वनी पण जेने खबर नथी, एवा आजना
विज्ञानीओ मा५ काचनी आंख वडे पृथ्वीनुं (जंबुद्वीपनुं) के सूर्य–चंद्र वगेरेनुं खरूं
स्वरूप समजी शकवाना नथी. आपणा वीतरागी–विज्ञानीओए सम्यक्ज्ञानना
दिव्यदूरबीन वडे जोयेली वस्तुस्थिति सदाय सत्य ज रहेशे. अतीन्द्रियज्ञानना दूरबीन
पासे काचना दूरबीन साचा नहीं पडे ईन्द्रियज्ञान पदेपदे छेतराशे, अतीन्द्रिय ज्ञान कदी
नहीं छेतराय.
जय होय अतीन्द्रियज्ञाननो
(ब्र ह. जैन)
* तुं एक छो *
परपदार्थो अनंता, आ आत्मा एक; अरे आत्मा! तुं एक छो. एक एवो तुं
परनो कर्ता थवा जईश तो अनंता पदार्थोमांथी केटलानुं करवा जईश? तुं करी तो नहि
शके कोईनुं, –करवानी मिथ्याबुद्धिथी तने अनंत आकुळता थशे. ते अनंत आकुळताना
अनंत दुःखथी आत्माने छोडाववानो उपाय एटलो ज छे के तारा उपयोगस्वरूप एक
आत्माने एकपणे ज राख.....परनो कर्ता थवानी खोटी महेनत न कर. तारा चैतन्य
उपयोगमां बीजाने घूसाडवानी व्यर्थ महेनत न कर. तारी महेनत नकामी जशे ने तुं
दुःखी थईश. उपयोगने उपयोगस्वरूपे ज तुं अनुभव्या कर, तेमां परम शांति छे.
तुं कर्ता नहि था तोपण जगतना समस्त पदार्थोनुं कार्य तो थया ज करवानुं छे.
तुं कर्तापणानी मिथ्याबुद्धि छोडी दईश तेथी कांई जगतना कोई पदार्थनुं काम अटकी
जवानुं नथी. हा, अटकी जशे मा५ तारी आत्मभ्रांति! अने थशे तने आत्मशांति. माटे
आत्मशांतिने हणनारी एवी आत्मभ्रांतिने छोड.....ने आत्मशांतिदातार एवुं भेदज्ञान
करीने उपयोगस्वरूप एक आत्मामां ज तारी बुद्धि जोड.
संतो वारंवार कहे छे के–
हे जीव! तुं एक छो.....तारा एकत्वमां तारी शोभा छे.