Atmadharma magazine - Ank 308a
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: ४० : आत्मधर्म : प्र. अषाड : २४९प
जे भाव कह्या ते भाव लक्षगत
करीने पढे–सूने समजे तो जरूर अनुभव
थाय ज. ज्ञानीओए रागथी भिन्न
थईने, अने ज्ञानमां एकाग्र थईने
समजवानुं कह्युं छे; परंतु तेने बदले जीव
रागमां एकाग्र रहीने सुणे छे, रागमां
शोधो.....ने.....ईनाम मेळवो
धर्मना पुस्तकोमांथी तमारे गमे ते एक पूरुं वाक्य्य
शोधीने लखवानुं छे–ते वाक्य्य टूंकामां टूंकुं होवुं जोईए. सौथी
टुकुं वाक्य लखी मोकलनाराओने ५णमांथी कोई एक वस्तु भेट
मोकलाशे. (दर्शनकथा, महाराणी चेलणा अथवा गुरुदेवनो
फोटो.) ५णमांथी कई वस्तु तमने पसंद छे ते लखवुं. जवाब
ता. १०–७–६९ सुधीमां (संपादक आत्मधर्म, सोनगढ) ए
सरनामे मोकलवा.
(गतांकनी तेमज आ अंकनी ईनामीयोजनामां ईनामो
आपवा माटे राजकोटना आपणा सभ्यो दीपक–रूपाबेन अने
कमलेश वछराज जैन तरफथी कुल रूा. ३३ा– आपवामां आव्या
छे ते बदल धन्यवाद!)
जरूर छे वात्सल्यनी....
साधर्मीना वात्सल्य वगर धर्मनो प्रेम होतो नथी.....
जेने धर्म वहालो एने साधर्मी पण वहाला.....
आजे जरूर छे खूब खूब वात्सल्यनी......