Atmadharma magazine - Ank 308a
(Year 26 - Vir Nirvana Samvat 2495, A.D. 1969)
(Devanagari transliteration).

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: प्र. अषाड : २४९प आत्मधर्म : ३९ :
लोको मुग्ध बन्या छे, परंतु अवकाशमां
सौथी श्रेष्ठ स्थान एवुं जे सिद्धालय
लोकाग्रे छे, ते लोकोग्रे सम्यक्त्वरूपी
रोकेटना बळे आप पहोंचवाना छो ने
अमने पण साथे लई जवाना छो, तेथी
आप ज श्रेष्ठ, ‘अवकाशया५ी’ छो.
आत्माश्रित मोक्षमार्गना शंखनाद फूंकीने
गुरुदेवे मोहांधकारमां सूतेला जीवोने
जगाडया छे; ए शंखनादनो अवाज देश–
परदेशमां पहोंची गयो छे, ने घरडा
तेमज युवान, बाळको तेमज कोलेजियनो
सौ जागृत बन्या छे, अहो, जगतना
जीवो! जागो.....ज्ञानीओए सत् पामवा
माटे जे जे दुर्लभता बतावी छे ते बधी
आपणा माटे अत्यारे सुलभ बनी रही
छे. आ महान अमूल्य तकनो लाभ
लईने भेदज्ञानवडे भयंकर भव दुःखथी
मुक्त थईए. गुरुदेवे पंचमकाळने
भूलावी दीधो छे ने आपणा माटे चोथो
काळ वर्ती रह्यो छे. बे पांचवर्ष के बे–
पांच भव नहिं परंतु अनंतकाळ सुधी
अनंत सुख मळ्‌या करे एवो मार्ग गुरुदेवे
आपणने आप्यो छे. (विशेषमां ते भाई
लखे छे के–) आवा वहाला गुरुदेवनां
दर्शन कर्यांने मने तो पांचपांच वर्षना
वहाणां वाई गयां. पांच वर्ष पहेलो
ज्यारे अमेरिका आवतो हतो त्यारे
गुरुदेवना दर्शन करवा अने आशीर्वाद
लेवा आव्यो हतो, त्यारे आहारदाननो
पण लाभ मळ्‌यो हतो. अहीं ते बधुं याद
आवे छे. ते वखतना गुरुदेवना वचनो
हजी पण कानमां गूंजे छे; तेमणे कह्युं हतुं
के ‘आ
आत्मानी समजण करवी ए ज
साचुं भणतर छुं’ हुं हवे थोडा ज वखतमां
त्यां (भारतमां आववानो छुं; पहेलां तो,
पांच पांच वर्षथी मारा गुरुदेवना दर्शननो
मने वियोग थयो छे एटले आवीने तरत
ज अनंत उपकारी गुरुदेवना दर्शन करवा
आववुं छे...बाळ विभागे अम बाळकोने
जागृत करी दीधा छे.....्य वगेरे लख्युं छे.
आ उपरथी बाळकोमां रेडातां
धर्मसंस्कारोनो ख्याल आवशे. अने
बाळविभागने उत्तेजन आपीने तेने
विकसाववानी केटली जरूर छे ते पण
जिज्ञासुओ समजी शकशे.
* जन्मदिवसनी भेट मळतां खुशी
थईने खंडवाथी नन्नीबेन लखे छे– ‘संतोका
यह फोटो देखकर हम अपने जीवनमें
उत्साह बढावेंगे, तथा देव–गुरु–शास्त्रकी
सेवा कर शास्त्रका अभ्यास करेंगे और
सन्तों के जैसा अपना जीवन बनाकर देशमें
जैनधर्मका डंका बजवायेंगे.’ खुशीसे
बजाओ....लेकिन धर्मका पहला डंका अपनी
आत्मामें बजाना.
प्रश्न:– वांचन और श्रवण करते
हुए भी अनुभव कयों नहीं होता? प्रेमसे
शास्त्र पढते भी है, सुनते भी है और
समझते भी है, फिर भी अनुभव नहीं
होता–ईसका कया कारण?
तमारो प्रश्न बहु मजानो छे, बेन!
साचुं फळ न आव्युं तो समजवुं के ज्ञानीना
भाव अनुसार न पढा न सुना न समझा;
ज्ञानीओए